श्री सत्यनारायण कथा- Satyanarayan Vrat Katha के चतुर्थ अध्याय के अनुसार, सूतजी बोले: वैश्य ने मंगलाचार कर अपनी यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल दिए। उनके थोड़ी दूर जाने पर एक दण्डी वेशधारी श्रीसत्यनारायण ने उनसे पूछा: हे साधु तेरी नाव में क्या है? अभिवाणी वणिक हंसता हुआ बोला: हे दण्डी! आप क्यों पूछते हो? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल व पत्ते भरे हुए हैं। वैश्य के कठोर वचन सुन भगवान बोले: तुम्हारा वचन सत्य हो! दण्डी ऎसे वचन कह वहाँ से दूर चले गए। कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए। दण्डी के जाने के बाद साधु वैश्य ने नित्य क्रिया के पश्चात नाव को ऊँची उठते देखकर अचंभा माना और नाव में बेल-पत्ते आदि देख वह मूर्छित हो जमीन पर गिर पड़ा।
मूर्छा खुलने पर वह अत्यंत शोक में डूब गया तब उसका दामाद बोला कि आप शोक ना मनाएँ, यह दण्डी का शाप है इसलिए हमें उनकी शरण में जाना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी। दामाद की बात सुनकर वह दण्डी के पास पहुँचा और अत्यंत भक्तिभाव नमस्कार कर के बोला: मैंने आपसे जो जो असत्य वचन कहे थे उनके लिए मुझे क्षमा दें, ऎसा कह कहकर महान शोकातुर हो रोने लगा तब दण्डी भगवान बोले: हे वणिक पुत्र! मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है। तू मेरी पूजा से विमुख हुआ। साधु बोला: हे भगवान! आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जानते तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूँ। आप प्रसन्न होइए, अब मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा- Satyanarayan Vrat Katha करूँगा। मेरी रक्षा करो और पहले के समान नौका में धन भर दो।
साधु वैश्य के भक्तिपूर्वक वचन सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वरदान देकर अन्तर्धान हो गए। ससुर-जमाई जब नाव पर आए तो नाव धन से भरी हुई थी फिर वहीं अपने अन्य साथियों के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन- Satyanarayan Vrat Katha कर अपने नगर को चल दिए। जब नगर के नजदीक पहुँचे तो दूत को घर पर खबर करने के लिए भेज दिया। दूत साधु की पत्नी को प्रणाम कर कहता है कि मालिक अपने दामाद सहित नगर के निकट आ गए हैं।
दूत की बात सुन साधु की पत्नी लीलावती ने बड़े हर्ष के साथ सत्यनारायण भगवान का पूजन- Satyanarayan Vrat Katha कर अपनी पुत्री कलावती से कहा कि मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूँ तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जा! माता के ऎसे वचन सुन कलावती जल्दी में प्रसाद छोड़ अपने पति के पास चली गई। प्रसाद की अवज्ञा के कारण श्रीसत्यनारायण भगवान रुष्ट हो गए और नाव सहित उसके पति को पानी में डुबो दिया। कलावती अपने पति को वहाँ ना पाकर रोती हुई जमीन पर गिर गई। नौका को डूबा हुआ देख व कन्या को रोता देख साधु दुखी होकर बोला कि हे प्रभु! मुझसे तथा मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करें।
साधु के दीन वचन सुनकर श्रीसत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई: हे साधु! तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़कर आई है इसलिए उसका पति अदृश्य हो गया है। यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटती है तो इसे इसका पति अवश्य मिलेगा। ऎसी आकाशवाणी सुन कलावती घर पहुंचकर प्रसाद खाती है और फिर आकर अपने पति के दर्शन करती है। उसके बाद साधु अपने बंधु-बाँधवों सहित श्रीसत्यनारायण भगवान का विधि-विधान से पूजन- Satyanarayan Vrat Katha करता है। इस लोक का सुख भोग वह अंत में स्वर्ग जाता है।
॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा- Satyanarayan Vrat Katha का चतुर्थ अध्याय संपूर्ण॥
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