BY : Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer
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राहू और केतू को प्रबल ग्रह माना जाता है और इन्हें छाया ग्रह की कोटि में स्थान दिया गया है| ये दोनों ग्रह बहुत अशुभ माने जाते हैं| राहू-केतु सेजुड़ी कई कहानियाँ कई हिन्दू ग्रन्थ में बताई गई हैं| यही दो ग्रह हैं जो सूर्य और चन्द्रमा को ग्रहण लगाते हैं| आइये जानते हैं कि आखिर राहू और केतु का जन्म कैसे हुआ और ये सूर्य और चन्द्रमा के ग्रहण का कारण क्यों बनते हैं|
राहू-केतु के जन्म का पौराणिक आधार
पौराणिक कथा के अनुसार राहू और केतू का जन्म बहुत ही इंटरेस्टिंग हैं| असुर सम्राट हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा द्वारा एक वरदान प्राप्त हुआ था किन उसे कोई नर मार सकता है न कोई पशु| इस राक्षस का अंत करने के लिए स्वयं नारायण से नरसिंह अवतार लिया|
हिरण्यकश्यप की एक बेटी थी जिसका नाम सिंहिका था|सिंहिका का विवाह विप्रचिती नामक एक महान और प्रसिद्ध राक्षस के साथ तय हुआ|शादी के बाद दोनों को एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहू था| राहू को स्वरभानू के नाम से भी जाना जाता है| राहू बचपन से ही बहुत तेज और बुद्धिमानथा| इतना ही नहीं राहू के शरीर में अपार बल था और वह अपने समूह का सबसे बलशाली राक्षस था|
एक समय की बात है जब राक्षसों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन की संधि हुई थी| संधि के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान हर चीज का बटवारा होना निश्चित हुआ| मंथन के दौरान आधा बल असुर लगाएंगे तो आधा बल देवता| वहीं मंथन के दौरान प्राप्त होने वाली सभी सामग्री दोनों पक्षोंके बीच आधी-आधी बाट ली जाएंगी|
मंथन के दौरान समुद्र से कई सारी चीजें बाहर आईं और दोनों पक्षों में बाटी गई| एक वक्त ऐसा भी आया जब मंथन से अमृत का आगमन हुआ| उसदौरान देवताओं ने भगवान विष्णु के पास त्राहि मान लगाया| और उनसे कहा “अगर असुर अमृत पान कर लेंगे तो उन्हें मार पाना बहुत कठिनहोगा”| तब भगवान विष्णु ने मोहनी का रूप धारण किया और उन्होंने कहा “इस अमृत को मैं अपने हाथों से देवताओं और राक्षसों को प्यार सेपिलाऊंगी|” इस बात से राक्षस राजी हो गए और उन्होंने अमृत के कलश को भगवान विष्णु के हाथों सौंप दिया|
भगवान विष्णु बहुत मायावी थे| उन्होंने एक कतार राक्षस की लगवाई तो दूसरी कतार देवताओं की| अमृत पान के लिए जब राक्षसों की बारी आतीतो उनके हाथ से अमृत से भरा कलश गायब हो जाता और दूसरा कलश आ जाता| और जब देवताओं की बारी आती तब वे अमृत का कलश धारणकर लेते थे| इस तरह से वे देवताओं को अमृत पिलाए और असुरों को पानी|
लेकिन, राहू देवताओं के इस चाल को तुरंत ही समझ गया और देवता रूप धारण कर सूर्य और चन्द्रमा के बीच बैठ गया| इस दौरान भगवान विष्णु ने उसे भी अमृत पीने दिया| लेकिन, चन्द्रमा और सूर्य को इस बात का पता लगा और उन्होंने तुरंत ही नारायण से इस बात को बता दिया|
तुरंत निर्णय लेते हुए नारायण ने राहू के सिर और धड़ को अलग कर दिया| लेकिन, राहू के पूरे शरीर में अमृत फैल चुका था और वह अमर हो गया था| इसलिए ब्रह्मा जी ने राहू के सिर को सर्प का धड़ दे दिया और राहू के धड़ को सर्प का सिर दे दिया| इस तरह राहू और केतु का जन्म हुआ|
राहू के राज को चन्द्रमा और सूर्य से उजागर कर दिया था इसलिए दोनों ही इनसे बैर करते हैं और जब मौका मिलता है इनके ग्रहण के फिरात में लग जाते हैं|
Author: Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer
Dr. Sandeep Ahuja, an Ayurvedic doctor with 14 years’ experience, blends holistic health, astrology, and Ayurveda, sharing wellness practices that restore mind-body balance and spiritual harmony.