October 1, 2018 Blog

राजघराने में हुआ था गौतम बुद्ध का जन्म, इस वजह से मोह माया का कर दिया था त्याग

BY : Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer

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By: Starzspeak

गौतम बुद्ध का जन्म 483 और 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में हुआ था. लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था. शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया. गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण उन्हें गौतम भी कहने जाने लगा. शाक्यों के राजा शुद्धोधन उनके पिता थे. 

परंपरागत कथा के अनुसार, सिद्धार्थ की माता मायादेवी का उनके जन्म के सात दिन बाद निधन हो गया था. उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजावती (गौतमी)ने किया. शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया, जिसका अर्थ है "वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो". जन्म समारोह के दौरान, साधु द्रष्टा आसित ने अपने पहाड़ के निवास से घोषणा की थी- बच्चा या तो एक महान राजा या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनेगा.
        
सिद्धार्थ बचपन से ही करुणायुक्त और गंभीर स्वभाव के थे. बड़े होने पर भी वह ऐसे ही रहें . तब पिता ने यशोधरा नामक एक सुंदर कन्या के साथ उनका विवाह करा दिया. यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया लेकिन सिद्धार्थ का मन गृहस्थी में नहीं लगा. जिसके कारण एक दिन व भ्रमण के लिए निकले. रास्ते में रोगी, वृद्ध और मृतक को देखा तो उन्हें जीवन की सच्चाई का पता चला. क्या मनुष्य की यही गति है, यह सोचकर वे बेचैन हो उठे. फिर एक रात्रिकाल में जब महल में सभी सो रहे थे सिद्धार्थ चुपके से उठे और पत्नी एवं बच्चों को सोता छोड़ वन को चल दिए.

महात्मा बुद्ध के मन में धीरे धीरे परिवर्तन होने लगा था. राजकुमार बुद्ध ने नगर में घुमने की इच्छा प्रकट की. नगर भ्रमण की उन्हें इजाज़त मिल गई. राजा ने नगर के रक्षकों को संदेश दिया कि वे राजकुमार केा सामने कोई भी ऐसा दृश्य न लाएं जिससे उनके मन में संसार के प्रति वैराग्य भावना पैदा हो. सिद्धार्थ नगर में घूमने गए. उन्होंने नगर में बूढ़े को देखा. उसे देखते ही उन्होंने सारथी से पूछा यह कौन है? इसकी यह दशा क्यों हुई है? सारथी ने कहा- यह एक बूढ़ा आदमी है. बुढ़ापे में प्राय सभी आदमियों की यह हालत हो जाती है.

सिद्धार्थ ने एक दिन रोगी को देखा. रोगी को देखकर उन्होंने सारथी से उसके बारे में पूछा. सारथी ने बताया- यह रोगी है और रोग से मनुष्य की ऐसी हालत हो जाती है. इन घटनाओं से सिद्धार्थ का वैराग्य भाव और बढ़ गया. सांसारिक सुखों से उनका मन हट गया. उन्होंने जीवन के रहस्य को जानने के लिए संसार को छोड़ने का निश्चय किया. उन्होंने वन में कठोर तपस्या आरंभ की. तपस्या से उनका शरीर दुर्बल हो गया परंतु मन को शांति नहीं मिली. तब उन्होंने कठोर तपस्या छोड़कर मध्यम मार्ग चुना. अंत में वे बिहार के गया नामक स्थान पर पहुंचे और एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए. एक दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. वे सिद्धार्थ से ‘बुद्ध‘ बन गए. वह पेड़ 'बोधिवृक्ष' के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

महात्मा बुद्ध के उपदेश सीधे-सादे थे. उन्होंने कहा कि संसार दु:खों से भरा हुआ है. दु:ख का कारण इच्छा या तृष्णा है. इच्छाओं का त्याग कर देने से मनुष्य दु:खों से छूट जाता है. उन्होंने लोगों को बताया कि सम्यक-दृष्टि, सम्यक- भाव, सम्यक- भाषण, सम्यक-व्यवहार, सम्यक निर्वाह, सत्य-पालन, सत्य-विचार और सत्य ध्यान से मनुष्य की तृष्णा मिट जाती है और वह सुखी रहता है. भगवान बुद्ध के उपदेश आज के समय में भी बहुत प्रासंगिक हैं.

सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली. कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता. 

उन्होंने निर्वाण का जो मार्ग मानव मात्र को सुझाया था, वह आज भी उतनाही प्रासंगिक है जितना आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व था, मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए उन्होंने स्वयं राजसी भोग विलास त्याग दिया और अनेक प्रकार की शारीरिक यंत्रणाए झेली. गहरे चिंतन – मनन और कठोर साधना के पश्चात् ही उन्हें गया (बिहार) में बोधिवृक्ष के निचे तत्वज्ञान प्राप्त हुआ था और उन्होंने सर्व प्रथम पांच शिष्यों को दिक्षा दी थी. तत्पश्चात अनेक प्रतापी राजा भी उनके अनुयायी बन गए. उनका धर्म भारत के बाहर भी तेजी से फैला और आज भी बौद्ध धर्म चीन, जपान आदि कई देशों का प्रधान धर्म है.

Author: Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer

Dr. Sandeep Ahuja, an Ayurvedic doctor with 14 years’ experience, blends holistic health, astrology, and Ayurveda, sharing wellness practices that restore mind-body balance and spiritual harmony.