ज्योतिष में सत्ताईस नक्षत्र होते है जिनमे से कुछ शुभ तथा कुछ अशुभ होते है । अश्विनी, अश्लेशा, ज्येष्ठा, मूल तथा रेवती नक्षत्र अशुभ नक्षत्रो की श्रेणी में आते है । इन नक्षत्रो में जन्म लेने वाले जातकों का जीवन समस्याओं तथा परेशानियों से घिरा रहता हैं, इसलिए इन्हे गंडमूल नक्षत्र कहते है । इन सबमे से मूल नक्षत्र सबसे अधुक अशुभ माना जाता है ।
इन नक्षत्रो में जन्म लेने वाले जातक दूसरो के साथ - साथ स्वयं भी संकटो से घिरे रहते है, जब भी किसी कुंडली में राशि और नक्षत्र एक ही स्थान पर होता है तो यह अशुभ माना जाता है, ऐसे जातक अपने मामा तथा माता - पिता के लिए परेशानियाँ पैदा करने वाले होते है ।
यदि किसी जातक का जन्म रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में, अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में, अश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में, ज्येष्ठा नक्षत्र के चौथे नक्षत्र में और मूल नक्षत्र के पहले चरण में चन्द्रमा स्थित होता है तो गंडमूल दोष का निर्माण होता है ।
अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में जन्म से पिता के जीवन में बाधा, परेशानी व कठिनाइयाँ आती है तथा जीवन में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है, इसी प्रकार आश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म पिता के लिए अशुभ ही होता है ।
मूल नक्षत्र के पहले चरण में जन्मा बालक पूरी उम्र अपने पिता को दुःख देता है और उसका पिता किसी न किसी समस्या से घिरा रहता है । इसी प्रकार जिस लड़की का जन्म रेवती नक्षत्र और रविवार के दिन हुआ हो वह अपने ससुराल पक्ष के लिए समस्या बनी रहती है ।