गुरु ग्रह को ज्ञान, विवेक का कारक माना जाता है । गुरु धार्मिक ग्रहों की श्रेणी में आता है, गुरु शुभ ग्रह है तथा यह भाग्य, धन और संतान का कारक है । यदि कुंडली में गुरु ग्रह शुभ स्थान पर स्थित हो तथा बलिष्ठ हो तो व्यक्ति नाम, शोहरत, धन, प्रसिद्धि सभी प्राप्त करता है ।
यदि कुंडली में गुरु शुभ हो तो व्यक्ति न्यायधीश, अध्यापक, लेखक, कवी, प्रशासनिक अधिकारी या किसी धार्मिक संस्था से जुड़ा होकर धन का अर्जन करता है ।
यदि किसी कुंडली में गुरु और शुक्र ग्रह का किसी भी तरह का सम्बन्ध हो चाहे वह दृष्टि सम्बन्ध हो या युति सम्बन्ध हो तथा यह दोनों ग्रह लग्न भाव या लग्नेश पर अपना प्रभाव डाले तथा शनि दशम भाव में स्थित हो या दशमेश लग्न पर प्रभाव डाले तो व्यक्ति वकालत का व्यवसाय कर सकता है । यदि किसी की कुंडली में गुरु तथा शुक्र चंद्र की राशि में स्थित हो तो ऐसा जातक कला से सम्बंधित व्यवसाय करता है ।
जब गुरु कुंडली में द्वितीय भाव या ग्यारहवे भाव का स्वामी होकर लग्न भाव या लग्नेश पर प्रभाव डाले और इन दोनों का दशम भाव से भी सम्बन्ध बन रहा हो तो ऐसा जातक मकान या प्रॉपर्टी किराये पर देकर, पैसा ब्याज पर देकर या किसी बैंक में काम करके धन कमाता है क्योकि दूसरा और ग्यारहवा भाव धन भाव है ।
यदि किसी जातक की कुंडली में गुरु दशम भाव का स्वामी होकर पंचम भाव, नवम भाव या बारहवे भाव से या इनके स्वामियों से सम्बन्ध बनाता है तो ऐसा जातक किसी धार्मिक संस्था से जुड़ा होकर पुजारी या किसी मंदिर से सम्बन्ध रखकर पैसा कमाता है ।