April 22, 2025 Blog

Shri Premanand Ji Maharaj: जानें कैसे मिलें प्रेमानंद जी और उनके आध्यात्मिक जीवन के रहस्य

BY : STARZSPEAK

Premanand Ji Maharaj:जब भी किसी सच्चे संत की बात होती है, तो मन खुद-ब-खुद श्रद्धा से झुक जाता है। ऐसे ही एक पावन आत्मा हैं श्री प्रेमानंद जी महाराज — जिनका जीवन राधा रानी की भक्ति में पूरी तरह समर्पित है। उनकी मौजूदगी और भक्ति का भाव हर दिल को छू जाता है, मानो भक्ति को जीता-जागता रूप मिल गया हो। उनकी सादगी, भक्ति और वाणी में ऐसा माधुर्य है कि हर श्रोता सहज ही आध्यात्मिक भाव में डूब जाता है। वे न केवल एक संत हैं, बल्कि भक्ति मार्ग पर चलने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं। उनका जीवन केवल तपस्या या प्रवचन तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके भीतर प्रेम, सेवा, त्याग और भक्ति की ऐसी धारा है, जो हर किसी को छू जाती है। आइए, जानते हैं उनके (Shri Premanand Ji Maharaj) जीवन की पूरी गाथा, जो ना सिर्फ भक्तों को मार्गदर्शन देती है, बल्कि जीवन जीने की एक नई दृष्टि भी देती है।

प्रेमानंद जी महाराज का प्रारंभिक जीवन (Early Life of Premanand Ji Maharaj)

श्री प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Maharaj Ji) का जन्म वर्ष 1972 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के एक छोटे से गांव अखरी (सरसौल के पास) में हुआ था। उनका जन्म नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। श्री प्रेमानंद जी महाराज (Shri Premanand Ji Maharaj) का जन्म एक ऐसे ब्राह्मण परिवार में हुआ जहाँ धर्म, भक्ति और साधना जीवन का अभिन्न हिस्सा था। उनके कुल में आध्यात्मिकता की गहरी जड़ें थीं। उनके दादा एक तपस्वी जीवन जीते थे, जिनका जीवन संयम और साधना से भरा हुआ था। वहीं, उनके पिता श्री शंभू पांडे जी भी अत्यंत धार्मिक स्वभाव के व्यक्ति थे, जिनके आचरण और विचारों में सदैव श्रद्धा और धर्म की झलक मिलती थी। इस पवित्र वातावरण ने बचपन से ही उनके भीतर अध्यात्म की बीज बो दिए थे।

छोटे अनिरुद्ध के मन में बचपन से ही आध्यात्मिक झुकाव था। जहां अन्य बच्चे खेल-कूद में लगे रहते, वहीं ये बालक धार्मिक पुस्तकों में खोए रहते। पाँचवीं कक्षा में ही उन्होंने 'हनुमान चालीसा', 'राम रक्षा स्तोत्र' आदि का नियमित पाठ शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे उनका मन गीता, रामायण, भागवत जैसे ग्रंथों में रमने लगा।

श्री प्रेमानंद जी महाराज ने क्यों छोड़ दिया घर  (Why did Shri Premanand Ji Maharaj leave home) 

एक साधारण सा दिन था, जब मात्र 13 वर्ष की उम्र में, आधी रात के समय उन्होंने घर त्याग दिया। कोई नाराजगी नहीं, कोई भय नहीं—बस एक आंतरिक पुकार थी जो उन्हें संसार की भीड़ से निकालकर प्रभु की ओर खींच रही थी।

श्री प्रेमानंद जी महाराज का साधना जीवन गहराई, तपस्या और प्रेरणा से भरा रहा है। बचपन से ही उन्होंने अनेक संतों की सेवा की, उनके साथ रहकर जीवन को समझा और आत्मिक मार्ग पर कदम बढ़ाए। उन शुरुआती वर्षों में ही उन्होंने ब्रह्मचर्य का संकल्प लिया और पूरी निष्ठा के साथ भक्ति और साधना के रास्ते पर चलते रहे। उनका यह समर्पण आज भी लोगों के लिए एक उजली मिसाल है। यहीं से उन्हें नया नाम मिला – आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी, जो उनके तप और त्याग का प्रतीक बन गया। इसके बाद वे संन्यास मार्ग पर चल पड़े और हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी, बद्रीनाथ जैसे तीर्थों में वर्षों तक कठोर तप किया। उनके पास न भोजन था, न वस्त्र, न आश्रय – वे खुले आसमान के नीचे, कभी गुफाओं में, तो कभी पेड़ों के नीचे बैठकर प्रभु-नाम में लीन रहते।

कई-कई दिन बिना अन्न के बिताए, शरीर क्षीण होता गया, लेकिन मन ईश्वर में और भी अधिक डूबता चला गया। बारिश, सर्दी, गर्मी – कोई भी परिस्थिति उनकी साधना को रोक न सकी। वे कहते हैं, “जब मैंने सबकुछ त्यागा, तब राधा रानी ने मुझे सब कुछ दिया।” उनका यह जीवन त्याग, तपस्या और निष्काम भक्ति की जीवंत मिसाल बन गया, जिसने उन्हें साधक से एक महान संत के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।

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गंगा से वृंदावन तक: श्री श्यामाश्याम की कृपा

जब वे काशी में साधना कर रहे थे, तब उन्हें एक अलौकिक अनुभव हुआ। श्री राधा-कृष्ण की झलक उनके ध्यान में आई और मन वृंदावन जाने को बेचैन हो उठा। यही वह क्षण था जब उनका जीवन एक नये अध्याय की ओर बढ़ा।

वृंदावन पहुंचकर, उन्होंने राधा बल्लभ मंदिर में सेवा की और फिर उन्हें अपना जीवनगुरु मिले – श्री गौरांग शरण जी महाराज। गुरुजी के चरणों में रहकर उन्होंने 10 वर्षों तक गुरुदेव की सेवा, अध्ययन, व्रजवास, और राधा रानी की प्रेममयी भक्ति में खुद को समर्पित कर दिया। (Premanand ji Maharaj)

'श्री हित राधा केली कुंज आश्रम' की स्थापना

भक्ति की यह यात्रा रुकी नहीं। वृंदावन में ही उन्होंने 'श्री हित राधा केली कुंज' नाम से एक आध्यात्मिक आश्रम की स्थापना की, जो आज हजारों श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा और भक्ति का केंद्र है।

श्री प्रेमानंद जी महाराज आश्रम का पता (Premanand Ji Maharaj Ashram)

श्री हित राधा केली कुंज, वृंदावन परिक्रमा मार्ग, वराह घाट के पास, भक्तिवेदांत हॉस्पिस के सामने, वृंदावन-281121, उत्तर प्रदेश

यहां प्रतिदिन सुबह 4:10 बजे से सत्संग की शुभ शुरुआत होती है। इसके पश्चात मंगला आरती, फिर श्रृंगार आरती, और उसके बाद राधा नाम संकीर्तन होता है, जिसमें भक्तजन प्रेमपूर्वक भाग लेते हैं। संध्या समय धूप आरती, वाणी पाठ और भक्त चरित्र का वाचन किया जाता है। ये सभी कार्यक्रम एक आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण वातावरण में सम्पन्न होते हैं, जहां श्रद्धा की ऊर्जा के साथ आत्मा को गहराई से शांति और आनंद की अनुभूति होती है।

विचारधारा और संदेश: 'राधा नाम ही सच्चा साधन है'

श्री प्रेमानंद जी महाराज (Swami Premanand Ji Maharaj) की पूरी विचारधारा राधा रानी के चरणों में समर्पित है। वे कहते हैं:

“जो राधा नाम में रम गया, वह संसार के सभी दुखों से मुक्त हो गया।”

उनका मानना है कि आज की भागदौड़ भरी दुनिया में मनुष्य शांति, प्रेम और अपनापन खोता जा रहा है। उसका समाधान केवल भक्ति में, प्रभु-नाम स्मरण में, और सेवा में है।

वे भक्ति को आडंबर से मुक्त रखना चाहते हैं। उनका सत्संग किसी विशेष धर्म या जाति से जुड़ा नहीं है, बल्कि हर वह व्यक्ति जो प्रेम से भरा हो, उसके लिए वहां स्थान है।

कठिनाइयों से पार: स्वास्थ्य संकट भी टाल गया उनका हौंसला

करीब 35 वर्ष की आयु में (Premanand ji Maharaj age), महाराज जी को पेट में तेज दर्द की शिकायत हुई। जब डॉक्टरों ने जांच की, तो यह चौंकाने वाला सच सामने आया कि उनकी दोनों किडनियां काम करना बंद कर चुकी थीं। डॉक्टरों ने उम्मीद भी लगभग छोड़ दी और बस 4-5 साल की उम्र का अनुमान दिया। लेकिन जिस संत ने अपने जीवन को भक्ति में समर्पित कर दिया हो, वह कैसे हार मानता? उन्होंने ना केवल इस चुनौती को स्वीकारा, बल्कि अपनी आस्था और संकल्प के बल पर जीवन को एक नई दिशा दी – जहां भक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति बन गई।

आज भी वे सप्ताह में तीन बार डायलिसिस कराते हैं, लेकिन सत्संग, भजन, सेवा और मार्गदर्शन में उनकी ऊर्जा कम नहीं हुई। उनका हौंसला और श्रद्धा इस बात की मिसाल है कि सच्चा साधक किसी भी परिस्थिति में ईश्वर से नाता नहीं तोड़ता।(Premanand ji Maharaj)

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कैसे करें श्री प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन? (How to have darshan of Premananda Ji Maharaj?) 

अगर आप श्री प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Ji Maharaj) से मिलना चाहते हैं, तो आप सीधे आश्रम में सुबह-सुबह पहुँच सकते हैं।

दर्शन व सत्संग का समय:
  • प्रातः 3 बजे से 3:30 बजे तक वहां पहुंचना सबसे सही समय होता है।
  • 4:10 बजे सत्संग शुरू होता है।
  • कोई विशेष अनुमति की आवश्यकता नहीं होती, बस भक्ति और श्रद्धा होनी चाहिए।
  • फोन संपर्क आश्रम में सीधे नहीं दिया जाता, लेकिन वहां जाकर सहयोगी सेवकों से जानकारी ली जा सकती है।

संत का जीवन: हमारे लिए क्या सिखाता है?

श्री प्रेमानंद जी महाराज (Shri Premanand Ji Maharaj) का जीवन हमें सिखाता है कि —

  • जीवन में चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ आएं, भक्ति और संकल्प से सब पार किया जा सकता है।

  • त्याग केवल वस्त्रों का नहीं, अहंकार का भी होना चाहिए।

  • राधा नाम की महिमा केवल सुनने के लिए नहीं, जीने के लिए होती है।

  • किसी की जाति, धर्म, उम्र या स्थिति नहीं, उसका हृदय और भावना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष: एक जीवंत प्रेरणा

श्री प्रेमानंद जी महाराज (Premanand ji Maharaj) सिर्फ एक संत नहीं, बल्कि भक्ति की जीती-जागती मिसाल हैं। उनका जीवन, उनका संघर्ष और दूसरों के लिए उनकी निःस्वार्थ सेवा हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। उन्हें देखकर लगता है जैसे भक्ति उनके हर शब्द और हर सांस में रची-बसी हो — ऐसा व्यक्तित्व जो हर किसी को भीतर से छू जाता है। जो हमें दिखाता है कि यदि मन में श्रद्धा हो, तो सांसारिक पीड़ा भी आपको रोक नहीं सकती।

अगर आप सच्चे प्रेम, शांति और भक्ति की तलाश में हैं, तो एक बार वृंदावन के 'श्री हित राधा केली कुंज' अवश्य जाइए। शायद वहां आपको भी वो राधा नाम की धारा मिल जाए, जिसकी तलाश में हम सब हैं।


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