April 15, 2025 Blog

Devshayani Ekadashi 2025: कब है देवशयनी एकादशी, जानिए पूजा विधि, मुहूर्त एवं व्रत कथा

BY : STARZSPEAK

Devshayani Ekadashi 2025: हर साल आषाढ़ मास में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व होता है। सनातन शास्त्रों के अनुसार, इस तिथि से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं और देवउठनी एकादशी के दिन पुनः जागृत होते हैं। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ होता है, जिसके दौरान किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होती है।

चातुर्मास के दौरान संपूर्ण सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है। सरल शब्दों में कहें तो इस अवधि में भगवान शिव सृष्टि की व्यवस्था संभालते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है। आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी की शुभ तिथि, मुहूर्त और विशेष योग।

देवशयनी एकादशी 2025: शुभ मुहूर्त (Devshayani Ekadashi 2025: Auspicious Time) 

पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 5 जुलाई को शाम 6:58 बजे प्रारंभ होकर 6 जुलाई को रात 9:14 बजे समाप्त होगी। सनातन परंपरा में उदया तिथि को महत्व दिया जाता है, इसलिए देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2025 Date) 6 जुलाई को मनाई जाएगी।

व्रत रखने वाले साधक 6 जुलाई को उपवास कर सकते हैं और 7 जुलाई को प्रातः 5:29 से 8:16 के बीच स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके बाद ब्राह्मणों को अन्नदान कर व्रत का पारण करें।


देवशयनी एकादशी 2025: पंचांग व शुभ मुहूर्त

  • सूर्योदय: प्रातः 05:29 बजे
  • सूर्यास्त: सायं 07:23 बजे
  • चंद्रोदय: दोपहर 03:38 बजे
  • चंद्रास्त: रात्रि 02:07 बजे
शुभ मुहूर्त:
  • ब्रह्म मुहूर्त:       04:08 से 04:49 बजे तक
  • विजय मुहूर्त:    02:45 से 03:40 बजे तक
  • गोधूलि मुहूर्त:   07:21 से 07:42 बजे तक
  • निशिता मुहूर्त: 12:06 से 12:46 बजे तक

इन शुभ मुहूर्तों में भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।


Devshayani Ekadashi 2025

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देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा (Mythological Story of Devshayani Ekadashi)

प्राचीन काल में सूर्यवंश के एक प्रतापी राजा शासन करते थे, जो मान्धाता के शासक थे। वे ईमानदार, शांतिप्रिय और पराक्रमी थे। राजा अपने प्रजा की सुख-समृद्धि का विशेष ध्यान रखते थे, जिससे उनके राज्य में हमेशा खुशहाली बनी रहती थी। उनके शासनकाल में कभी कोई संकट या दुर्भिक्ष नहीं आया था।

हालांकि, एक दिन अचानक उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा, जिससे लोग भूख और निराशा से त्रस्त हो गए। यह स्थिति राजा के लिए अचंभे की बात थी, क्योंकि उनके राज्य में पहले कभी ऐसी विपत्ति नहीं आई थी। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए राजा ने गहन प्रयास किया और अंततः उनकी यात्रा उन्हें जंगलों में स्थित महर्षि अंगिरा के आश्रम तक ले गई। महर्षि अंगिरा, जो भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे, ने राजा की विनम्र प्रार्थना सुनकर उन्हें देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi Vrat) के व्रत का पालन करने की सलाह दी।

राजा ने पूर्ण श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को किया। परिणामस्वरूप, जल्द ही उनके राज्य से अकाल और सूखे का अंत हो गया, और चारों ओर पुनः शांति व समृद्धि लौट आई।

देवशयनी एकादशी का महत्व (Importance of Devshayani Ekadashi)

देवशयनी एकादशी का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। माना जाता है कि वे क्षीरसागर में विश्राम करते हैं, जिससे इस अवधि में शुभ कार्यों, विशेष रूप से विवाह आदि, को स्थगित कर दिया जाता है।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, हरि शयनी एकादशी आषाढ़ माह के दशम चंद्र दिवस की रात से प्रारंभ होती है। यह कोई भव्य उत्सव नहीं है, लेकिन इस दिन भक्त श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। वे भगवान को फूल अर्पित करते हैं, दीप प्रज्वलित करते हैं और विशेष रूप से खीर का भोग लगाते हैं, जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। साथ ही, भक्त पूरे दिन भजन-कीर्तन और श्लोकों का जाप कर भगवान की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।


देवशयनी एकादशी व्रत का पवित्र अनुष्ठान (Sacred Rituals of Devshayani Ekadashi Vrat)

देवशयनी एकादशी व्रत (Devshayani Ekadashi Vrat) धार्मिक रूप से अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसकी शुरुआत ब्रह्ममुहूर्त में, यानी सूर्योदय से लगभग डेढ़ घंटे पहले, स्नान और ध्यान के साथ की जाती है। इसके बाद, पूजा की सभी आवश्यक सामग्रियों को तैयार किया जाता है, और भगवान की मूर्तियों को ईशान कोण में एक लाल सूती वस्त्र पर स्थापित किया जाता है।

पूजन क्रम में भगवान गणेश और भगवान विष्णु की मूर्तियों पर पवित्र जल का छिड़काव किया जाता है, उन्हें पुष्प अर्पित किए जाते हैं और खीर के साथ तिलक लगाया जाता है। दीपक प्रज्वलित कर इसे ज्ञान, सत्य और बुद्धि की दिव्य ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसके पश्चात, आरती और प्रार्थना कर भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का संकल्प लिया जाता है।

व्रत की पूर्णाहुति के लिए भक्तों को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और प्रसाद के बचे हुए भाग को घर के दक्षिणी कोने में रखना शुभ माना जाता है। नारद पुराण के अनुसार, जो भक्त इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करता है, वह अपने कर्मों को शुद्ध कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

निष्कर्ष (Conclusion) 

देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के दिन की गई तपस्या और भक्ति भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का माध्यम बनती है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह अवसर भक्तों को ईश्वर के साथ अपने संबंध को प्रगाढ़ करने और आत्मिक शुद्धता की ओर अग्रसर होने का मार्ग दिखाता है।

इस पावन अवसर का अनुसरण करने वाले सभी भक्तों को भगवान विष्णु की शांति और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। आशा है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी रही होगी!


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