March 2, 2025 Blog

Kamakhya Devi Temple: कौन है माँ कामाख्या देवी तथा क्या है इस मंदिर का रहस्य

BY : STARZSPEAK

Kamakhya Devi Temple: कामाख्या देवी मंदिर भारत के प्रसिद्ध 52 शक्तिपीठों में से एक है, जो आस्था और रहस्यों से भरा हुआ है। असम के गुवाहाटी से करीब दो मील पश्चिम में नीलगिरि पर्वत पर स्थित सिद्धि पीठ को कामाख्या मंदिर (Kamakhya Devi Mandir) के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को अघोरियों और तांत्रिकों का पवित्र स्थल भी माना जाता है। इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख कालिका पुराण में भी मिलता है और इसे सबसे प्राचीन शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

मान्यता है कि माता सती का योनि भाग इसी स्थान पर गिरा था, जिसके बाद यहां मां कामाख्या का पवित्र मंदिर स्थापित किया गया। यह मां दुर्गा के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है, जहां तांत्रिक अपनी सिद्धियों की साधना करने के लिए आते हैं। इस मंदिर (Kamakhya Devi Mandir) से जुड़ी कई रहस्यमयी मान्यताएं और अद्भुत घटनाएं हैं, जो इसे और भी विशेष बनाती हैं। आइए, जानते हैं इस पावन स्थल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य!

शक्ति और आस्था का केंद्र: कामाख्या देवी मंदिर (Center of power and faith: Kamakhya Devi Temple)

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किए, तो जहां-जहां ये अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। माना जाता है कि कामाख्या में माता की योनी गिरी थी, इसलिए यहां देवी की मूर्ति नहीं, बल्कि योनी रूप की पूजा की जाती है। यह मंदिर शक्ति साधना का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेउल, बसंती पूजा, मदन देउल, अंबुवाची और मनसा पूजा जैसे त्योहारों के दौरान यहां की भव्यता देखने लायक होती है।

कामाख्या मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें ( Important things related to Kamakhya Devi Temple)

  • मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त कन्या भोज कराते हैं, जबकि कुछ श्रद्धालु यहां पारंपरिक रूप से पशु बलि चढ़ाते हैं। खास बात यह है कि मादा जानवरों की बलि नहीं दी जाती।
  • कामाख्या देवी तांत्रिकों की प्रमुख देवी मानी जाती हैं और उन्हें भगवान शिव की नववधू के रूप में पूजा जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को आसानी से दूर कर सकते हैं। इस मंदिर से जुड़े साधुओं के पास विशेष आध्यात्मिक शक्तियां होती हैं, जिनका वे सोच-समझकर उपयोग करते हैं।
  • यह स्थान तंत्र साधना के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि यदि किसी पर काला जादू किया गया हो, तो यहां के अघोरी और तांत्रिक उसे समाप्त कर सकते हैं। साथ ही, इस मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं।

Kamakhya Devi Temple

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तीन दिनों के लिए लाल हो जाता है ब्रह्मपुत्र का जल 

मान्यता है कि कामाख्या देवी मंदिर (Kamakhya Devi Mandir) हर साल 22 जून से 25 जून तक बंद रहता है, क्योंकि इन दिनों माता रजस्वला होती हैं। इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल हो जाता है, जिसे देवी की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इसे मां कामाख्या के रजस्वला होने का प्रतीक माना जाता है। हर साल इस विशेष अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ मंदिर में उमड़ती है।

इन तीन दिनों तक पुरुषों को मंदिर (Kamakhya Devi Temple) में प्रवेश की अनुमति नहीं होती। फिर 26 जून की सुबह मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं, और वे माता के दर्शन कर सकते हैं।

मंदिर का प्रसाद भी अनोखा होता है—माना जाता है कि देवी सती के मासिक धर्म के दौरान मंदिर में एक सफेद वस्त्र रखा जाता है, जो तीन दिनों के बाद लाल रंग में परिवर्तित हो जाता है। इसे अंबुवाची वस्त्र कहा जाता है और भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इसी लाल वस्त्र को भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया 


मान्यताएँ और आस्था 

कामाख्या मंदिर (Kamakhya Devi Mandir) को लेकर यह मान्यता प्रचलित है कि यदि कोई व्यक्ति जीवन में तीन बार इस मंदिर के दर्शन कर ले, तो वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। इसके अलावा, यह मंदिर तंत्र विद्या और साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। यही कारण है कि मंदिर के कपाट खुलने पर दूर-दूर से साधु-संत और तांत्रिक भी दर्शन के लिए आते हैं।

कैसे हुई माँ कामाख्या शक्तिपीठ की उत्पति

प्राचीन कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने जानबूझकर अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। जब माता सती को इस बात का पता चला, तो भगवान शिव के मना करने के बावजूद वे यज्ञ में शामिल होने चली गईं। वहां, जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, तो माता सती इस अपमान को सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ-अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।

जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए और उनके तीसरे नेत्र की ज्वाला से पूरा संसार कांप उठा। उन्होंने माता सती के पार्थिव शरीर को अपने कंधे पर उठाया और गहरे शोक में इधर-उधर घूमने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां माता के अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। कामाख्या मंदिर (Kamakhya Devi Mandir) उस स्थान पर स्थित है, जहां माता सती का योनि भाग गिरा था।


कामाख्या तंत्र में देवी का महत्व

तंत्र शास्त्रों में मां कामाख्या का विशेष स्थान है। एक श्लोक में उनकी महिमा का वर्णन इस प्रकार किया गया है—

“योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा॥”

अर्थात, मां कामाख्या को महाशक्ति का स्वरूप माना जाता है, जो कामनाओं की पूर्ति करने वाली हैं और तांत्रिक सिद्धियों की अधिष्ठात्री देवी हैं।

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कामाख्या मंदिर के निर्माण की पौराणिक कथा (Mythology Of Kamakhya Devi Temple)

मां कामाख्या मंदिर (Kamakhya Devi Mandir) के निर्माण से जुड़ी एक प्राचीन कथा प्रचलित है।

जब माँ सती ने आत्मदाह किया, तो भगवान शिव गहरे शोक में डूब गए और उन्होंने समाधि लगा ली। इसी दौरान तारकासुर नामक दैत्य ने ब्रह्माजी की कठोर तपस्या कर कई शक्तियां प्राप्त कर लीं। अपनी शक्ति के बल पर उसने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। देवता उसके आतंक से परेशान हो गए और ब्रह्माजी से उसके अंत का उपाय पूछा। ब्रह्माजी ने बताया कि तारकासुर का वध केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही किया जा सकता है।


कामदेव ने तोड़ी भगवान शिव की समाधि

भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए कामदेव को भेजा गया। उन्होंने अपने प्रेम के बाण चलाए, जिससे भगवान शिव की समाधि भंग हो गई। क्रोध में आकर महादेव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी और कामदेव को भस्म कर दिया। यह देखकर कामदेव की पत्नी रति अत्यंत दुखी हुईं और अपने पति को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कामदेव को फिर से जीवनदान तो दिया, लेकिन उनका रूप-रंग और शक्तियां समाप्त हो गईं।


माँ कामाख्या ने किया उद्धार

अपनी शक्तियों और सौंदर्य को खो चुके कामदेव अत्यंत दुखी थे। उन्होंने भगवान शिव से अनुरोध किया कि उन्हें पुनः पहले जैसा बना दें। इस पर भगवान शिव ने कहा कि नीलांचल पर्वत पर सती के जननांग स्थित हैं। यदि कामदेव वहाँ एक भव्य मंदिर का निर्माण कराएंगे, तो उन्हें उनका सौंदर्य और शक्ति वापस मिल जाएगी।

इसके बाद कामदेव ने मंदिर (Kamakhya Devi Mandir) के निर्माण के लिए देव शिल्पी विश्वकर्मा को बुलाया। मंदिर का निर्माण पूर्ण होते ही कामदेव को अपना पूर्व स्वरूप और शक्तियां पुनः प्राप्त हो गईं। तभी से इस स्थान को "कामरूप" के नाम से जाना जाने लगा।


मां कामाख्या देवी और नरकासुर
की कथा

कामाख्या मंदिर (Kamakhya Devi Temple) के पास स्थित अधूरी सीढ़ियों से जुड़ी एक रोचक पौराणिक कथा प्रचलित है।
कहानी के अनुसार, नरकासुर नामक राक्षस माँ कामाख्या की सुंदरता पर मोहित हो गया और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। देवी कामाख्या ने उससे छुटकारा पाने के लिए एक शर्त रखी— यदि वह एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बना लेगा, तो वह उससे विवाह कर लेंगी।
नरकासुर ने यह शर्त स्वीकार कर ली और तेजी से सीढ़ियां बनाने लगा। जब माँ कामाख्या को लगा कि वह कार्य पूरा कर सकता है, तो उन्होंने एक कौवे को मुर्गा बनाकर तड़के ही बांग देने को कहा। सुबह की बांग सुनकर नरकासुर को लगा कि वह शर्त हार गया, जिससे क्रोधित होकर उसने मुर्गे की बलि दे दी। बाद में, भगवान विष्णु ने नरकासुर का वध कर दिया।
जिस स्थान पर मुर्गे की बलि दी गई, वह "कुकुराकता" नाम से प्रसिद्ध हुआ।

निष्कर्ष

कामाख्या मंदिर (Kamakhya Devi Temple) न केवल एक धार्मिक स्थल है बल्कि आस्था, शक्ति और तंत्र साधना का केंद्र भी माना जाता है। इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं इसके दिव्य महत्व को दर्शाती हैं। चाहे वह माता सती का शक्तिपीठ होना हो, कामदेव का उद्धार हो, या तांत्रिक परंपराओं का केंद्र होना—हर कथा इस मंदिर की आध्यात्मिक महिमा को और भी विशेष बनाती है। यही कारण है कि यह मंदिर न केवल भक्तों बल्कि साधु-संतों और तांत्रिकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है।

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