January 14, 2025 Blog

रथ सप्तमी 2025: क्या है इसका महत्व और कब है शुभ मुहूर्त?

BY : STARZSPEAK

Ratha Saptami: रथ सप्तमी हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व हिंदू पंचांग के माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि आमतौर पर जनवरी के मध्य से फरवरी के मध्य तक आती है। रथ सप्तमी वसंत पंचमी के दो दिन बाद पड़ती है। यह त्योहार सूर्य देव को समर्पित है और इसे सूर्य जयंती, माघ जयंती, या माघ सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य देव को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इस दिन को सूर्य भगवान के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि इस दिन सूर्य देव ने पूरे संसार को प्रकाश और ऊर्जा से आलोकित किया।

रथ सप्तमी का इतिहास (Ratha Saptami History)

‘रथ’ का अर्थ है रथ। माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन भगवान सूर्य को उनके स्वर्णिम रथ पर सवार देखा जाता है, जिसे सात सफेद घोड़े खींचते हैं। रथ सप्तमी का महत्व केवल यही नहीं है। भारत में कई सूर्य मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित हैं, जहां रथ सप्तमी पर विशेष पूजा और उत्सव आयोजित किए जाते हैं। तिरुमला तिरुपति बालाजी मंदिर में इस दिन खास पूजा की जाती है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इस त्योहार का विशेष महत्व है।

रथ सप्तमी 2025 कब है? (Ratha Saptami 2025)

हिंदू पंचांग के अनुसार, रथ सप्तमी 2025 माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाएगी।

Ratha Saptami 2025 date and muhurat

घटना तिथि और समय
रथ सप्तमी 2025 की तिथि 4 फरवरी 2025
रथ सप्तमी तिथि प्रारंभ समय 4 फरवरी 2025, सुबह 4:36 बजे
रथ सप्तमी तिथि समाप्त समय 5 फरवरी 2025, सुबह 2:30 बजे
रथ सप्तमी स्नान मुहूर्त 4 फरवरी 2025, सुबह 5:22 से 7:09 तक

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रथ सप्तमी 2025 का महत्व (Significance of Ratha Saptami 2025)

रथ सप्तमी 2025 (Ratha Saptami 2025) सूर्य देव के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य ने अपनी ऊर्जा और प्रकाश से पूरे ब्रह्मांड को आलोकित किया। यह त्योहार गर्मियों की शुरुआत का संकेत देता है और दक्षिण भारत में मौसम परिवर्तन का प्रतीक है।

यह दिन किसानों के लिए फसल कटाई के मौसम की शुरुआत का संकेत देता है। साथ ही, इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन दान करने से पापों का नाश होता है और लंबी आयु, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।

रथ सप्तमी के अनुष्ठान

  1. पवित्र स्नान: इस दिन सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करना आवश्यक है। यह स्नान अरुणोदय (सूर्योदय से पहले) के समय किया जाता है।
    • मान्यता है कि इस समय स्नान करने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है और सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है। इसी कारण इस दिन को आरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है। तमिलनाडु में लोग पवित्र स्नान के लिए एरुक्कू के पत्तों का उपयोग करते हैं।

  2. अर्घ्यदान: स्नान के बाद, भगवान सूर्य को जल अर्पित करना (अर्घ्यदान) अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस अनुष्ठान के दौरान जल कलश के माध्यम से सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।
    • भक्तों को यह प्रक्रिया बारह बार दोहरानी चाहिए और प्रत्येक बार भगवान सूर्य के विभिन्न नामों का उच्चारण करना चाहिए।

  3. पूजा: अर्घ्यदान के बाद, भक्त रथ सप्तमी पूजा करते हैं। इसमें घी का दीपक जलाकर, धूप, कपूर और लाल रंग के फूलों से भगवान सूर्य की पूजा की जाती है।

  4. रथ का चित्रण: महिलाएँ इस दिन रथ और सूर्य देव का चित्र बनाकर उनका स्वागत करती हैं। यह समृद्धि और सकारात्मकता का प्रतीक है। कई स्थानों पर घरों के दरवाजे पर रंगोली भी बनाई जाती है।

  5. दूध उबालने की परंपरा: मिट्टी के पात्र में दूध उबालकर उसे सूर्य की दिशा में रखा जाता है। यह दूध बाद में भगवान को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।

  6. मंत्रों का जाप: इस दिन सूर्याष्टकम, सूर्य सहस्रनाम, और गायत्री मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

रथ सप्तमी की कथा (Ratha Saptami Story)

कथा 1:

एक बार कंबोज राज्य के राजा यशोवर्मा को पुत्र प्राप्ति की मनोकामना थी। वर्षों की तपस्या और यज्ञ के बाद उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। लेकिन वह पुत्र गंभीर बीमारी से ग्रस्त था। निराश राजा-रानी ने एक ऋषि से उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि उनके पुत्र को रथ सप्तमी पूजा करनी चाहिए और सूर्य देव से आरोग्यता का वरदान मांगना चाहिए। राजा के पुत्र ने ऋषि के बताए अनुसार पूजा की और सूर्य देव की कृपा से स्वस्थ हो गया। बाद में वह एक महान शासक बना।

कथा 2:

दुर्वासा मुनि, जो अपने क्रोध और शाप के लिए प्रसिद्ध थे, एक बार श्रीकृष्ण से मिलने गए। उस समय श्रीकृष्ण के पुत्र शांभ बहुत बलशाली और स्वस्थ थे। शांभ ने मुनि के कमजोर शरीर का मजाक उड़ाया। दुर्वासा मुनि क्रोधित होकर शांभ को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया। श्रीकृष्ण ने शांभ को सूर्य देव की उपासना करने की सलाह दी। शांभ ने रथ सप्तमी पूजा और व्रत किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें स्वस्थ और निरोग कर दिया।

रथ सप्तमी पूजा के लाभ (Benefits of Performing Ratha Saptami Puja)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिलता है। साथ ही, भगवान सूर्य की कृपा से लंबी आयु, अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि का वरदान मिलता है।

रथ सप्तमी कैसे मनाई जाती है? (How is Ratha Saptami celebrated?)

सूर्य देव को समर्पित भारत के विभिन्न मंदिरों में इस दिन बड़े उत्सव और विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं। तिरुमला तिरुपति बालाजी मंदिर, श्री मंगेश मंदिर, और मल्लिकार्जुन मंदिर में भव्य आयोजन होते हैं। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में भी इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

निष्कर्ष

रथ सप्तमी 2025 (Ratha Saptami 2025) न केवल सूर्य देव की उपासना का पर्व है, बल्कि यह स्वास्थ्य, समृद्धि और पापों से मुक्ति का मार्ग भी दिखाता है। इस दिन किए गए दान-पुण्य और पूजा-अर्चना से भक्तों को भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होती है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि मौसम और कृषि के दृष्टिकोण से भी इसका बड़ा महत्व है।

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