October 3, 2024 Blog

Dev Uthani Ekadashi 2024: जानें शुभ तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि, क्यों होती है इस दिन से मांगलिक कार्यों की शुरुआत

BY : STARZSPEAK

Dev Uthani Ekadashi 2024: हिन्दू धर्म में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। इसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहते है। इस शुभ दिन भगवान विष्णु, जिन्हें जगत का पालनकर्ता माना जाता है, अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2024) से सभी शुभ और मांगलिक कार्यों का प्रारंभ होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर क्षीर सागर में विश्राम के लिए चले जाते हैं और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जागृत होते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस अवधि में विवाह और अन्य शुभ कार्य नहीं किए जाते।


देवउठनी एकादशी कब है?(When is Dev Uthani Ekadashi 2024?)

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर की शाम 6:46 बजे से प्रारंभ होगी और 12 नवंबर की शाम 4:04 बजे समाप्त होगी। चूंकि तिथि का निर्णय सूर्योदय के आधार पर होता है, इसलिए देवउठनी एकादशी 12 नवंबर 2024, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी। व्रत का पारण 13 नवंबर की सुबह 6:42 बजे से 8:51 बजे के बीच किया जा सकता है।

पारण हरि वासर के दौरान नहीं करना चाहिए, क्योंकि हरि वासर द्वादशी तिथि की प्रारंभिक एक चौथाई अवधि को कहते हैं। व्रत तोड़ने के लिए सबसे शुभ समय प्रातःकाल होता है, और मध्याह्न के समय पारण करने से बचना चाहिए। अगर प्रातःकाल पारण संभव न हो, तो इसे मध्याह्न के बाद किया जा सकता है।


शुभ मुहूर्त (Auspicious time)

इस एकादशी पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं। ज्योतिष के अनुसार, सर्वप्रथम 12 नवंबर की सुबह 7:52 बजे से सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो 13 नवंबर की सुबह 5:40 बजे तक रहेगा। साथ ही, हर्षण योग का निर्माण भी 12 नवंबर को शाम 7:10 बजे से होगा। इसके अतिरिक्त, रवि योग का संयोग भी इस विशेष दिन को और अधिक शुभ बना रहा है। इन योगों में लक्ष्मी नारायण की पूजा करने से साधकों को अपार शुभ फल की प्राप्ति होगी।

कुछ अवसरों पर, एकादशी व्रत दो दिन तक मनाया जाता है। ऐसे में, पहले दिन स्मार्त परिवारों को व्रत करना चाहिए, जबकि दूसरे दिन की एकादशी को दूजी एकादशी कहा जाता है, जो विशेष रूप से सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण होती है। जब एकादशी व्रत दो दिन मनाया जाता है, तो दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन पड़ती हैं। विष्णु भक्तों को दोनों दिन व्रत करने की सलाह दी जाती है।

Dev Uthani Ekadashi 2024

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देवउठनी एकादशी का महत्त्व (Importance Of Dev Uthani Ekadashi)

देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2024) का धार्मिक महत्व बहुत ही विशेष है। ऐसा माना जाता है कि इस पावन दिन भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागृत होते हैं और फिर से सृष्टि के संचालन का कार्यभार संभालते हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस अवधि में सभी मांगलिक कार्य, जैसे विवाह और अन्य शुभ संस्कार, स्थगित कर दिए जाते हैं। देवउठनी एकादशी से ही सभी शुभ कार्यों का पुनः आरंभ होता है।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनके सभी पापों का नाश होता है। यह दिन अत्यंत पुण्यकारी और सिद्धि प्रदान करने वाला होता है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। 

देवउठनी एकादशी की पूजा विधि (Method of worship of Dev Uthani Ekadashi)

देवउठनी एकादशी के दिन भक्त भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं। इस दिन कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है, जो इस प्रकार हैं:

1. देवउठनी एकादशी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें। गंगा जल से स्नान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। अगर गंगा स्नान संभव न हो, तो स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना भी शुभ होता है।

2.  स्नान के बाद भगवान विष्णु के समक्ष व्रत रखने का संकल्प लें। व्रत के दौरान केवल फलाहार या एक बार भोजन करने की परंपरा होती है। कुछ लोग निर्जला व्रत भी रखते हैं।

3. भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें। इसके बाद दीपक जलाएं और भगवान विष्णु को फूल, चंदन, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें। तुलसी के पत्तों का उपयोग पूजा में विशेष रूप से किया जाता है, क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है।

4. इस दिन भगवान विष्णु और माता तुलसी के विवाह की परंपरा भी है। इस दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम के साथ कराने का महत्त्व होता है। इसे तुलसी विवाह के नाम से भी जाना जाता है। इस पूजा से सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

5.  पूजा के बाद देवउठनी एकादशी की व्रत कथा (Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha) का श्रवण करना आवश्यक होता है। व्रत कथा के माध्यम से भक्त भगवान की लीलाओं और उनके चमत्कारों का स्मरण करते हैं।

6. भगवान विष्णु की आरती करें और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। दिन भर भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

7. इस दिन दान का विशेष महत्त्व है। अन्न, वस्त्र और धन का दान करें। गरीबों को भोजन कराना भी शुभ माना जाता है। 

 

देवउठनी एकादशी से जुड़े धार्मिक कथा (Religious story related to Dev Uthani Ekadashi)


देवउठनी एकादशी की कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से अनुरोध किया कि वह क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाएं ताकि सृष्टि का संचालन धीमा हो सके। भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी की यह बात मान ली और आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर शयन करने चले गए। उनके शयन करने से धरती पर कोई शुभ कार्य नहीं किया जा सकता था। इस स्थिति को चातुर्मास कहा गया, जिसमें चार माह तक भगवान विष्णु विश्राम करते हैं।

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, तब सभी प्रकार के शुभ कार्य फिर से आरंभ होते हैं। इसलिए इस एकादशी को देवप्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी कहा जाता है। 


देवउठनी एकादशी का वैज्ञानिक महत्त्व (Scientific importance of Dev Uthani Ekadashi)

धार्मिक महत्त्व के साथ-साथ देवउठनी एकादशी का वैज्ञानिक पहलू भी है। चातुर्मास की अवधि में वर्षा का मौसम होता है, जिसमें संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इस अवधि में यात्रा और मांगलिक कार्यों से बचना स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी होता है। जब वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है और मौसम शांत हो जाता है, तब देवउठनी एकादशी से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है, जो सामूहिक रूप से समाज को लाभ पहुंचाती है।

उपसंहार (Conclusion)

देवउठनी एकादशी का पर्व धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करके मोक्ष और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। शुभ मुहूर्त में पूजा और व्रत करने से जीवन में शांति, सुख और समृद्धि आती है। इसके साथ ही दान और पुण्य के कार्यों से समाज और स्वयं के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।

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