देव दिवाली(Dev Diwali) हिंदू संस्कृति का एक प्रमुख त्योहार है, जिसका हमारी संस्कृति में बहुत महत्ता है। मुख्यता यह त्यौहार वाराणसी में मनाया जाता है। देव दिवाली हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है जो कि दिवाली के 15 दिन बाद होता है। इस अवसर पर वाराणसी के घाटों पर हजारों दीपक जलाए जाते हैं, जहां भक्तजन इस पवित्र त्योहार को धूमधाम से मनाने के लिए एकत्र होते हैं।
देव दीपावली वाराणसी (Dev Diwali Varanasi) के गंगा किनारे तट पर मनाई जाती है , इसके साथ साथ दीवाली का समापन और तुलसी विवाह का अनुष्ठान समाप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवी-देवता गंगा नदी में पवित्र स्नान करने के लिए पृथ्वी पर उतरते हैं। गंगा के घाटों को देवताओं और देवी गंगा के सम्मान में लाखों मिट्टी के दीपों से सजाया जाता है। 1985 में पंचगंगा घाट पर दीये जलाने की यह परंपरा शुरू हुई थी, जो आज वाराणसी के सभी घाटों तक फैल गई है। राजघाट से रविदास घाट तक घाटों पर दीपमालाएं सजाई जाती हैं और गंगा में स्नान को शुभ माना जाता है, जिसे 'कार्तिक स्नान' कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरा उत्सव भी कहा जाता है। इसलिए देव दीपावली(dev diwali) का त्यौहार भगवान शिव की शैतान पर जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसके अलावा, यह त्यौहार शिव के पुत्र भगवान कार्तिक की जयंती का भी प्रतीक है। देव दीपावली के साथ ही गुरु नानक जयंती और जैन प्रकाश पर्व भी मनाए जाते हैं।
धार्मिक महत्व के साथ-साथ यह दिन देशभक्ति से भी जुड़ा हुआ है। इस अवसर पर उन वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है, जिन्होंने भारत की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी। वाराणसी में शहीदों की स्मृति में पुष्पांजलि अर्पित की जाती है, जिसे गंगा सेवा निधि द्वारा बड़े पैमाने पर आयोजित किया जाता है। देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं, और भारतीय सशस्त्र बलों के तीनों अंगों द्वारा इस आयोजन का समापन किया जाता है।

इस साल देव दिवाली(dev diwali 2024) 15 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को दोपहर 12 बजे से शुरू होकर 19 नवंबर को शाम 5:10 बजे समाप्त होगी। पूजा का प्रदोष मुहूर्त 26 नवंबर को शाम 5:10 बजे से 7:47 बजे तक होगा।
वाराणसी में देव दिवाली (dev diwali varanasi) का उत्सव अद्वितीय होता है। गंगा के किनारे स्थित घाटों पर लाखों दीये जलाए जाते हैं, और गंगा का पानी पूर्णिमा की चांदनी में चमकता है। इस त्योहार के दौरान मुख्य आकर्षण निम्नलिखित हैं:
देव दिवाली (dev diwali) वाराणसी की एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जो हर साल हजारों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करती है।
इस साल काशी के 84 से अधिक घाटों, कुंडों और तालाबों पर योगी सरकार और जन सहयोग से 12 लाख से अधिक दीप जलाए जाएंगे। पर्यटन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर राजेंद्र कुमार रावत के अनुसार, इन दीपों में ढाई से तीन लाख दीप गाय के गोबर से बनाए जाएंगे। गंगा के पार रेत पर भी दीप जलेंगे, जिससे घाट और गंगा की रेत भी पूरी तरह रोशनी से जगमगा उठेगी। देव दिवाली के कुछ दिनों पहले से ही घाटों कि साफ़ सफाई शुरू कर दी जाती है एवं पुराने ऐतिहासिक घाट फसाड और इलेक्ट्रिक लाइट्स से रोशन किये जायँगे।
यदि आप वारणशी जाने में सक्षम नहीं है तो अपने अपने घरो में भी 5,7,11 या 21 दीप प्रज्वलित कर सकते है। उससे भी देव प्रशन्न होते है।
आप सभी को देव दिवाली कि बहुत बहुत शुभकामनाये।
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Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.