अघोरियों को उनकी वेशभूषा और रहन-सहन से अलग पहचाना जा सकता है। इन्हें देखकर स्वाभाविक तौर पर कोई भी डर सकता है. अघोरियों के आचार-विचार और रहन-सहन आम इंसान से बहुत अलग होते हैं। आज हम आपको उनकी (Aghori) जिंदगी से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जो सुनने में बेहद अजीब लग सकती हैं।
अघोरी (Aghori) बाबा भगवान शिव के अघोरनाथ रूप की भी पूजा करते हैं, जिसका वर्णन श्वेताश्वतरो उपनिषद में मिलता है। इसके साथ ही अघोरी बाबा भैरवनाथ को भी अपना आराध्य मानते हैं। भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले अवधूत भगवान दत्तात्रेय को अघोरशास्त्र का गुरु भी माना जाता है।
अघोरी वही बन सकता है जो सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठ चुका हो। जहां आम आदमी श्मशान से दूरी बनाए रखना चाहता है, वहीं अघोरी (Aghori) श्मशान में ही वास करना पसंद करते हैं। अघोरपंथ में दाह संस्कार का विशेष महत्व माना जाता है। यह भी माना जाता है कि श्मशान में की गई साधना का फल जल्द मिलता है।
जब कोई अघोरी (Aghori) किसी शव पर पैर रखकर साधना करता है तो उसे शिव और शव साधना कहा जाता है। इस साधना में शव को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है। अघोरी एक पैर पर खड़े होकर महादेव की पूजा करते हैं और श्मशान में बैठकर हवन करते हैं।
अघोरी अपने साथ नरमुंड यानी मानव खोपड़ी रखते हैं, जिसे 'कपालिक' कहा जाता है। इसके अलावा, वे इसे भोजन के कंटेनर के रूप में भी उपयोग करते हैं। अघोरी (Aghori) अक्सर कच्चा मांस और यहां तक कि मानव शव भी खाते हैं। अघोरियों की एक और पहचान यह है कि वे किसी से कुछ नहीं मांगते। अघोरी अपने शरीर पर चिता की राख लपेटते हैं और चिता की आग पर ही अपना भोजन पकाते हैं।
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