June 12, 2024 Blog

Yama Dharmaraja Temple: इन 3 मंदिरों में लगती है यम देवता की कचहरी

BY : STARZSPEAK

Yama Dharmaraja Temple: धर्मराज का सबसे पुराना मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर में है। यह मंदिर एक हजार साल पुराना है। इस मंदिर में धर्मराज की पूजा की जाती है। भगवान यम के दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए बड़ी संख्या में भक्त तंजावुर में यम मंदिर जाते हैं। इस मंदिर में यमराज की पूजा करने से साधक को अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है।

Yama Dharmaraja Temple History: सनातन धर्म में पुनर्जन्म का विधान है। इसका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका पुनः जन्म होता है। इससे पूर्व मृत्यु उपरांत व्यक्ति को जीवन काल में किए गए अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार फल प्राप्त होता है। अच्छे कर्म करने वाले लोगों को मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। वहीं, बुरे कर्म वाले लोगों को नरक का दुख भोगना पड़ता है। एक बार पाप या पुण्य कर्म का फल भोगने के बाद व्यक्ति को नवजीवन प्राप्त होता है।

गरुड़ पुराण में निहित है कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु और महाकाल के शरणागत रहने वाले साधकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे लोगों को मृत्यु लोक में दोबारा नहीं आना पड़ता है। उन्हें बैकुंठ और शिव लोक में स्थान प्राप्त होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान स्वयं अपने भक्तों को लेने आते हैं। अतः कृष्ण भक्तों को मृत्यु के समय कोई दर्द या दुख नहीं होता है। वहीं, बुरे कर्मों में लिप्त रहने वाले लोगों को मृत्यु के समय अत्यधिक कष्ट होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में यम के देवता धर्मराज के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं? इन मंदिरों में धर्मराज विराजते हैं। इनमें एक मंदिर हजार साल पुराना है। वहीं, हिमाचल प्रदेश में स्थित मंदिर में यम देवता की कचहरी लगती है। इस मंदिर (Yama Dharmaraja Temple) में ही व्यक्ति को मृत्यु के बाद कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक मिलता है। यह फैसला यम के देवता धर्मराज सुनाते हैं। आइए, इन 03 मंदिरों के बारे में जानते हैं- 

यह भी पढ़ें - Morning Tips: सुबह उठकर किए गए ये काम, नहीं होने देते धन की कमी 

Yama Dharmaraja Temple
भरमौर धर्मराज मंदिर (Yama Dharmaraja Temple)

हिमाचल प्रदेश अपनी खूबसूरती के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस राज्य में कई प्रमुख पर्यटक और धार्मिक स्थल हैं। इनमें से धर्मराज का मुख्य मंदिर हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के भरमौर में है। इस मंदिर में धर्मराज की मूर्ति स्थापित है। मंदिर के दूसरे कक्ष में चित्रगुप्त जी विराजमान हैं। स्थानीय लोगों की मंदिर के प्रति अगाध आस्था है। धर्मराज मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। हालांकि श्रद्धालु मंदिर परिसर से ही धर्मराज और चित्रगुप्त जी का दर्शन-पूजन करते हैं। मंदिर के गर्भगृह में बहुत कम लोग जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे सबसे पहले भरमौर स्थित यम मंदिर में पेश किया जाता है। इसके बाद यमराज का दरबार लगता है। उस समय चित्रगुप्त जी धर्मराज को उसके कर्मों का लेखा-जोखा सुनाते हैं। व्यक्ति को जीवन में किए गए कर्मों के अनुसार ही ऊंचे और निचले लोकों में भेजा जाता है। अच्छे कर्म करने वाली आत्मा को धर्मराज के दूत स्वर्ग ले जाते हैं। वहीं बुरे कर्म करने वाली आत्मा को नर्क में भेजा जाता है।

कैसे पहुंचे धर्मराज मंदिर ?

श्रद्धालु देश की राजधानी दिल्ली से हवाई, रेल या सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। श्रद्धालु सड़क मार्ग से सीधे भरमौर (Yama Dharmaraja Temple) पहुंच सकते हैं। हालाँकि, हवाई मार्ग से, चंबा का निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। श्रद्धालु अपनी सुविधा के अनुसार चंबा पहुंच सकते हैं।

धर्मराज मंदिर (मथुरा)

यम के देवता धर्मराज (Yama Dharmaraja Temple) का एक और प्रसिद्ध मंदिर मथुरा में है। यह मंदिर मथुरा के विश्राम घाट पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान यम अपनी बहन यमुना के साथ मौजूद हैं। सनातन ग्रंथों में वर्णित है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने के बाद इसी स्थान पर विश्राम किया था। इसी कारण इसे विश्राम घाट कहा जाता है। विश्राम घाट स्थित सरोवर में स्नान कर धर्मराज की पूजा करने से साधक को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है। भक्त को यमलोक नहीं जाना पड़ता।

कथा

सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि एक समय धर्मराज अपनी बहन यमुना के घर भोजन के लिये आये। पंचांग के अनुसार भैया दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन यमुना जी के निमंत्रण पर भगवान यम अपनी बहन यमुना के घर गये थे। माँ यमुना ने यमराज का आतिथ्य सत्कार किया। इससे प्रसन्न होकर यमदेव ने कहा- बहन! मैं आपकी दयालुता से बहुत प्रसन्न हूं. तुम वर मांगो. आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. यह सुनकर मां यमुना ने कहा कि आप ऐसा वरदान दें जिससे संपूर्ण मानव जगत का कल्याण हो। साथ ही वह व्यक्ति आपके क्रोध से भी बच जाए. उस समय धर्मराज ने कहा, बहन! जो व्यक्ति कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को विश्राम घाट पर स्नान-ध्यान करेगा। उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी. साथ ही मृत्यु के बाद वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।

कैसे पहुंचे मंदिर ?

देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों से श्रद्धालु हवाई, रेल या सड़क मार्ग से मथुरा पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग से साधक बस सेवा द्वारा भी मथुरा पहुँच सकते हैं।  दिल्ली से मथुरा की दूरी 180 किलोमीटर है। यह मंदिर शाम को 04 बजे से रात 08 बजे तक बंद रहता है।

तंजावुर धर्मराज मंदिर

धर्मराज का सबसे पुराना मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर में है। यह मंदिर एक हजार साल पुराना है। इस मंदिर में धर्मराज की पूजा की जाती है। इस मंदिर में यमराज भैंसे पर बैठे हैं। भगवान यम के दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए बड़ी संख्या में भक्त तंजावुर में यम मंदिर जाते हैं। इस मंदिर (Yama Dharmaraja Temple) में यमराज की पूजा करने से साधक को अकाल मृत्यु की बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही सभी प्रकार की शारीरिक और मानसिक परेशानियों से भी छुटकारा मिलता है।

कथा

सनातन ग्रंथों में वर्णित है कि एक बार भगवान शिव ध्यान में लीन थे। उस समय सभी देवता कैलाश पहुंचे। भगवान शिव को ध्यान मुद्रा में देखकर देवता सोचने लगे कि भगवान शिव ध्यान मुद्रा से कब बाहर आएंगे। यह सोचकर उन्होंने कामदेव को भगवान शिव का ध्यान भटकाने की सलाह दी। देवताओं की सलाह मानकर कामदेव ने भगवान शिव का ध्यान तोड़ने का असफल प्रयास किया। यह देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गये। उन्होंने तुरंत कामदेव को भस्म कर दिया। ये जान रति रोने लगी. उस समय रति ने भगवान यम से कामदेव को पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया। उस समय धर्मराज ने भगवान शिव से अनुमति ली और कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। उन्होंने भगवान शिव से जीवन का वरदान भी मांगा। भगवान शिव ने यमराज को यह वरदान दिया. इसी स्थान पर भगवान यम ने कामदेव को पुनर्जीवित किया था।

कैसे पहुंचे धर्मराज मंदिर?

श्रद्धालु हवाई मार्ग से त्रिची पहुंच सकते हैं। त्रिची (Yama Dharmaraja Temple) से तंजावुर की दूरी लगभग 55-57 किलोमीटर है। हवाई अड्डे के बाहर से टैक्सी और बस की सुविधा उपलब्ध है। वहीं, रेल मार्ग से निकटतम रेलवे स्टेशन त्रिची है। साधक अपनी सुविधा के अनुसार त्रिची पहुंच सकते हैं। 

यह भी पढ़ें - Lord Ganesh: जीवन के दुखों को दूर करने के लिए करें यह एक कार्य