Ayodhya Ram Mandir Pran Pratishtha: सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए साल 2024 का पहला महीना यानी जनवरी बहुत ही खास रहने वाला है। यह महीना ऐतिहासिक होने वाला है, क्योंकि इस माह में अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम के बाल स्वरूप की मूर्ति प्रतिष्ठित की जाएगी। हिंदू धर्म में किसी भी मंदिर में की जाने वाली भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का बहुत बड़ा महत्व होता है।
सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का बहुत ज्यादा महत्व है। मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा जरूर किया जाता है। किसी भी मूर्ति की स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है। प्राण शब्द का अर्थ जीवन शक्ति और प्रतिष्ठा का अर्थ है स्थापना से माना जाता है। ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है, जीवन शक्ति की स्थापना करना या देवता को जीवन में लाना।
कोई भी मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा से पहले पूजा के योग्य नहीं मानी जाती है। प्राण प्रतिष्ठा के जरिए मूर्ति में जीवन शक्ति का संचार करके उसे देवता के रूप में बदला जाता है। इसके बाद वो पूजा के योग्य बन जाती है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति रूप में उपस्थित देवी-देवता की विधि-विधान से पूजा, धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रों का जाप किया जाता है।
कहा जाता है कि प्राण प्रतिष्ठित किए जाने के बाद खुद भगवान उस प्रतिमा में उपस्थित हो जाते हैं। हालांकि प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान के लिए सही तिथि और शुभ मुहूर्त का होना अनिवार्य होता है। बिना मुहूर्त के प्राण प्रतिष्ठा करने से शुभ फल नहीं मिलता है।
सबसे पहले प्रतिमा को गंगाजल या विभिन्न पवित्र नदियों के जल से स्नान कराया जाता है। फिर स्वच्छ वस्त्र से मूर्ति को पोछकर नवीन वस्त्र धारण कराया जाता है। इसके बाद प्रतिमा को शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर विराजित करके चंदन का लेप लगाकर श्रृंगार किया जाता है। फिर बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इस समय पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा की जाती है। अंत में आरती-अर्चना कर लोगों में प्रसाद वितरित किया जाता है।
मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं, तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन ।।
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव, प्रसन्नो भव, वरदा भव ।।
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