March 28, 2023 Blog

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित (Gajendra Moksha Stotra)

BY : STARZSPEAK

श्रीमद्भगवत गीता के तीसरे अध्याय में गजेंद्र मोक्ष (Gajendra Moksha Stotra) मगरमच्छ के मुंह से हाथी की मुक्ति के बारे में एक स्तोत्र का वर्णन किया गया है। (Gajendra Moksha Stotra) बताता है कि कैसे, जब एक हाथी मगरमच्छ के मुंह से खुद को मुक्त करने की कोशिश करता है, तो वह इसे अपने दम पर नहीं कर सकता। उसकी सारी शक्ति नष्ट हो जाती है।

जब हाथी को पीड़ा हुई तो उसने श्री हरि को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्री हरि उसकी सहायता के लिए आए। उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल मगरमच्छ का गला काटकर हाथी को छुड़ाने के लिए किया। यह इस बात का प्रमाण है कि यदि आप भगवान विष्णु को कष्ट और पीड़ा में याद करते हैं, तो भगवान आपकी सहायता के लिए आएंगे।

Gajendra Moksha Stotra – गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र

श्री शुक उवाच 

एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि ।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥१॥

गजेन्द्र उवाच गजराज ने (मन ही मन) कहा –
ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम ।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥१॥

यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं ।
योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ॥३॥

यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं
क्कचिद्विभातं क्क च तत्तिरोहितम ।

अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षते
स आत्ममूलोवतु मां परात्परः ॥४॥

कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु ।

तमस्तदाsssसीद गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेsभिविराजते विभुः ॥५॥

न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु-
र्जन्तुः पुनः कोsर्हति गन्तुमीरितुम ।

यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ॥६॥

दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम
विमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः ।

चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतत्मभूता सुहृदः स मे गतिः ॥७॥

न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वा
न नाम रूपे गुणदोष एव वा ।

तथापि लोकाप्ययाम्भवाय यः
स्वमायया तान्युलाकमृच्छति ॥८॥

तस्मै नमः परेशाय ब्राह्मणेsनन्तशक्तये ।
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे ॥९॥

नम आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने ।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ॥१०॥

सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता ।
नमः केवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥११॥

नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे ।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ॥१२॥

क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे ।
पुरुषायात्ममूलय मूलप्रकृतये नमः ॥१३॥

सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे ।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासय ते नमः ॥१४॥

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Gajendra Moksha Stotra

नमो नमस्ते खिल कारणाय

निष्कारणायद्भुत कारणाय ।

सर्वागमान्मायमहार्णवाय

नमोपवर्गाय परायणाय ॥१५॥

गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपाय

तत्क्षोभविस्फूर्जित मान्साय ।

नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-

स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ॥१६॥

मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणायमुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय।

स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते॥

आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तैर्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय।

मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभावितायज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय॥

यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामाभजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति।

किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययंकरोतु मेदभ्रदयो विमोक्षणम॥

एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थवांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः।

अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलंगायन्त आनन्न्द समुद्रमग्नाः॥

तमक्षरं ब्रह्म परं परेश-मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम।

अतीन्द्रियं सूक्षममिवातिदूर-मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे॥

यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः।

नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः॥

यथार्चिषोग्नेः सवितुर्गभस्तयोनिर्यान्ति संयान्त्यसकृत स्वरोचिषः।

तथा यतोयं गुणसंप्रवाहोबुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः॥

स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंगन स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः।

नायं गुणः कर्म न सन्न चासननिषेधशेषो जयतादशेषः॥

जिजीविषे नाहमिहामुया कि मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या।

इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम॥

सोऽहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम।

विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोस्मि परं पदम॥

योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते।

योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम॥

नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग-शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय।

प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तयेकदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने॥

नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम।

तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोऽस्म्यहम॥

श्री शुकदेव उवाच ।। Gajendra Moksha Stotra।।

एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषंब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः।

नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वाततत्राखिलामर्मयो हरिराविरासीत॥

तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासःस्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि:।

छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमानश्चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः॥

सोऽन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम।

उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छान्नारायण्खिलगुरो भगवान नम्स्ते॥

तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्यसग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार।

ग्राहाद विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रंसम्पश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम॥

गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ (Gajendra Moksha Stotra) 

अगहन के महीने में, लोग कभी-कभी बेहतर स्थान पर पुनर्जन्म लेने के लिए धार्मिक प्रार्थना और तपस्या करते हैं। इस महीने में भगवान कृष्ण की पूजा करना विशेष रूप से पुण्यदायी होता है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से आपको बहुत सम्मान और सौभाग्य की प्राप्ति होगी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मास में गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र (Gajendra Moksha Stotra) , विष्णु सहस्त्रनाम और भगवद गीता का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। परंपरा के अनुसार दिन में 2-3 बार इन प्रार्थनाओं को पढ़ने से आप 10 अलग-अलग दिशाओं से आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे।

इस मास का बहुत महत्व है क्योंकि यह भगवान श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है। कहा जाता है कि इस महीने में पवित्र नदियों में स्नान करने और भगवान कृष्ण के किसी भी अवतार की पूजा करने से आपके सभी पाप क्षमा हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त, इस महीने में, यदि आप स्कंद पुराण पा सकते हैं, तो आप भाग्यशाली हैं। इस ग्रंथ के अनुसार यदि आपके घर में स्कंद पुराण है तो आपको दिन में एक बार उसकी पूजा करनी चाहिए।

।। गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र।।
।। Gajendra Moksha Stotra।।

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