May 24, 2022 Blog

श्री सत्यनारायण कथा - पंचम अध्याय- Satyanarayan Vrat Katha

BY : STARZSPEAK

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। खासकर जब आप किसी खास मौके पर पूरी श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं तो आपको भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसलिए, मुख्य रूप से महीने की एकादशी, गुरुवार और पूर्णिमा तिथि को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस पूजा के दौरान लोग सत्यनारायण व्रत कथा- satyanarayan vrat katha भी पढ़ते और सुनते हैं। पुराणों में भी इस कथा का बहुत महत्व बताया गया है।

आज के इस लेख में हम सत्यनारायण व्रत कथा- satyanarayan vrat katha का पंचम अध्याय प्रस्तुत करने जा रहे हैं

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सूतजी बोले: हे ऋषियों ! मैं और भी एक कथा सुनाता हूँ, उसे भी ध्यानपूर्वक सुनो! प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत ही दुख सान किया। एक बार वन में जाकर वन्य पशुओं को मारकर वह बड़ के पेड़ के नीचे आया। वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति-भाव से अपने बंधुओं सहित सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा। अभिमानवश राजा ने उन्हें देखकर भी पूजा स्थान में नहीं गया और ना ही उसने भगवान को नमस्कार किया। ग्वालों ने राजा को प्रसाद दिया लेकिन उसने वह प्रसाद नहीं खाया और प्रसाद को वहीं छोड़ वह अपने नगर को चला गया।

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जब वह नगर में पहुंचा तो वहाँ सबकुछ तहस-नहस हुआ पाया तो वह शीघ्र ही समझ गया कि यह सब भगवान ने ही किया है। वह दुबारा ग्वालों के पास पहुंचा और विधि पूर्वक पूजा कर के प्रसाद खाया तो श्रीसत्यनारायण भगवान की कृपा- Satyanarayan Vrat Katha से सब कुछ पहले जैसा हो गया। दीर्घकाल तक सुख भोगने के बाद मरणोपरांत उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।

जो मनुष्य परम दुर्लभ इस व्रत को करेगा तो भगवान सत्यनारायण की अनुकंपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी। निर्धन धनी हो जाता है और भयमुक्त हो जीवन जीता है। संतान हीन मनुष्य को संतान सुख मिलता है और सारे मनोरथ पूर्ण होने पर मानव अंतकाल में बैकुंठधाम को जाता है।

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सूतजी बोले: जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा कहता हूँ। वृद्ध शतानन्द ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म लेकर मोक्ष की प्राप्ति की। लकड़हारे ने अगले जन्म में निषाद बनकर मोक्ष प्राप्त किया। उल्कामुख नाम का राजा दशरथ होकर बैकुंठ को गए। साधु नाम के वैश्य ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आरे से चीरकर मोक्ष पाया। महाराज तुंगध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्तियुक्त हो कर्म कर मोक्ष पाया।

॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का – Satyanarayan Vrat Katha पंचम अध्याय संपूर्ण॥

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