गायत्री मंत्र - ॐ भूर्भुव स्व.
माण्डूक उपनिषद् - ॐ यह अमर शब्द ही पूरी दुनिया है,
बौद्ध मंत्र - ॐ मणि पोई गुरु ग्रंथ साहिब -एक ओंकार सतनाम
योग सूत्र - तस्य वाचकः प्रणव
इन सभी मंत्र या श्लोक में यानी क्या समानता है? समानता है ॐ॥
ॐ यानी ओम, जिसे "ओकारी' या प्रणत भी कहा जाता है। देखें तो सिर्फ दाई अक्षर हैं, समझे तो पूरे माह का सार है। औम धार्मिक नहीं है तकिन यह हिंदू धर्म बौद्ध धर्ग जैन धर्म ओ सिख धर्म जैसे कुछ धम में एक पारंपरिक प्रतीक और पवित्र ध्वनि के रूप में प्रकट होता है। ॐ किसी एक की संपत्ति नहीं है, ॐ सबका है, यह सार्वभौमिक है, और इसमें पूरा ब्रह्मांड है।
ॐ को "प्रथम ध्वनि" माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भ्रमंड में भौतिक निर्माण के अस्तित्व में आने से पहले जो प्राकृतिक ध्वनि थी, वह थी ॐ की गूँज। इस लिए ॐ को ब्रह्मांड की आवाज कहा जाता है। इसका क्या मतलब है? किसी तरह प्राचीन योगियों को पता था जो आज वैज्ञानिक हमें बता रहें हैं: ब्रह्मांड स्थायी नहीं है।
कुछ भी हमेशा ठोस या स्थिर नहीं होता है। सब कुछ जो स्पंदित होता है, एक लयबद्ध कंपन का निर्माण करता है जिसे प्राचीन योगियों ने ॐ की ध्वनि में क़ैद किया था। हमें अपने दैनिक जीवन में हमेशा इस ध्वनि के प्रति सचेत नहीं होते हैं, लेकिन हम ध्यान से सुने तो इसे शरद ऋतु के पत्तों में, सागर की लहरों में, या शंख के अंदर की आवाज़ में सुन सकते हैं।
कुछ भी हमेशा ठोस या स्थिर नहीं होता है। सब कुछ जो स्पंदित होता है, एक लयबद्ध कंपन का निर्माण करता है जिसे प्राचीन योगियों ने ॐ की ध्वनि में क़ैद किया था। हमें अपने दैनिक जीवन में हमेशा इस ध्वनि के प्रति सचेत नहीं होते हैं, लेकिन हम ध्यान से सुने तो इसे शरद ऋतु के पत्तों में, सागर की लहरों में, या शंख के अंदर की आवाज़ में सुन सकते हैं।
जब हम ॐ का जाप करते हैं, यह हमें हमारे सांस, हमारी जागरूकता और हमारी शारीरिक ऊर्जा के माध्यम से इस सार्वभौमिक चाल की सवारी पर ले जाता है, और हम एक गहरा संबंध समझना शुरू करते हैं जो मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है।
ॐ ओम का अर्थ क्या है और ॐ का महत्व क्या है
ॐ शब्द का गठन वास्तविकता मनुष्य जाती के सबसे महान अविष्कारों में से एक है। ॐ को सबसे पहले उपनिषद (जो की वेदांत से जुड़े लेख हैं) में वर्णित किया गया था। उपनिषदों में ॐ का अलग-अलग तरह से वर्णन किया गया है जैसे कि "ब्रह्मांडीय ध्वनि" या "रहस्यमय शब्द" या "दैवीय चीज़ों की प्रतिज्ञान"।
संस्कृत में ॐ शब्द तीन अक्षरों से बना है: "अ", "उ", और "म"।
जब "अ" और "उ" को जोड़ा जाता है, तो यह मिलकर "ओ" अक्षर बन जाते हैं। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है नहीं है, क्योंकि यदि आप क्रमशः "अ" और "उ" को बार-बार दोहराते हैं, तो आप पाएंगे कि इस मिश्रण का परिणामस्वरूप ध्वनि "ओ" स्वाभाविक रूप से आती है।
इसके बाद आखिरी पत्र "म" कहा जाता है। "अ" ध्वनि गले के पीछे से निकलती है। आम तौर पर, यह पहली ध्वनि है जो सभी मनुष्यों द्वारा मुंह खोलते ही निकलती है, और इसलिए अक्षर "अ" शुरुआत को दर्शाता है। इसके बाद ध्वनि "उ" आती है, जो तब निकलती है जब मुंह एक पूरी तरह से खुले होने से अगली स्थिति में आता है। इसलिए "उ" परिवर्तन के संयोजन को दर्शाता है। ध्वनि "म" का गठन होता है जब होठों को जोड़ते हैं और मुंह पूरी तरह बंद हो जाता है, इसलिए यह अंत का प्रतीक है।
और इसके अलावा, ॐ के उच्चारण के द्वारा ईश्वर की पहचान करने में सहायेता मिलती है, ईश्वर जो कि शुरुआत, मध्य और ब्रह्मांड के अंत का स्रोत है। ॐ की कई अन्य व्याख्याएं भी हैं, जिनमें से कुछ हैं:
इस मेडिटेशन को मंत्र ध्यान भी कहा जाता है. हिन्दू धर्म में ॐ शब्द का काफी महत्व माना गया है. कहा जाता है की ॐ का उच्चारण मात्र से ही मन में शांती और एकाग्रता आती है, ॐ का जाप करने की विधि इस प्रकार है:
ॐ शब्द इस दुनिया में किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। हिन्दू धर्म में ऋषि-मुनियों के अुनसार ॐ शब्द के तीन अक्षरों से अलग-अलग अर्थ निकलते हैं। यह ॐ शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है। अ, उ, म। प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग-अलग नामों को अपने आप में समेटे हुये है। ॐ का उच्चारण मात्र से ही शरीर के अलग-अलग भागों में कंपन होता है। जैसे ‘अ’ शरीर के निचले भाग में (पेट के करीब) कंपन होता है। ‘उ’ शरीर के मध्य भाग में (छाती के करीब) कंपन होता है और ‘म’ शरीर के ऊपरी भाग में (मस्तिष्क) कंपन होता है।
ॐ इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड में उसी तरह भरा हुआ है जैसे कि आकाश। ॐ का जाप करने से जो आनन्द और शांति अनुभव होती है, वैसी शान्ति किसी और शब्द के उच्चारण से नहीं आती। यही कारण है कि सब जगह बहुत लोकप्रिय होने वाली आसन प्राणायाम की कक्षाओं में ॐ के उच्चारण का बहुत महत्व है। बहुत ज्यादा मानसिक तनाव व अवसाद से ग्रसित लोगों पर कुछ ही दिनों में इसका जादू सा प्रभाव होता है। इसी कारण डॉक्टर भी अपने मरीजों को प्राणायाम आसन करने की सलाह देते हैं।
ॐ को जानने का अर्थ है भगवान को जान लेना। समस्त वेद ॐ के महत्व की व्याख्या करते है। अनेक विचारधाराओं में ॐ की प्रतिष्ठा को सिद्ध किया गया है। ॐ को अपनाकर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। साधना तपस्या के द्वारा ॐ का चिन्तन करके व्यक्ति अपने पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहा जाता है। यह ब्रह्माण्ड की अनाहत ध्वनि है और संपूर्ण ब्रह्माण्ड में यह अनवरत जारी है इसका न आरंभ है न अंत। जो भी ॐ का उच्चारण करता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है। ॐ के चिंतन मनन द्वारा समस्त समस्याओं से मुक्त हो चित्त को एकाग्र करके साधक भाव में समाने लगता है। इसमें लीन व्यक्ति विषय वासनाओं से दूर रहता है और परमतत्व का अनुभव करता है। अनेक धार्मिक क्रिया-कलापों में ॐ शब्द का उचारण होता है। जो इसके महत्व को प्रदर्शित करता है। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्माण्ड के सृजन के पहले यह मंत्र ही संपूर्ण दिशाओं में व्याप्त रहा है। सर्वप्रथम इसकी ध्वनि को सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। ॐ के महत्व को अन्य धर्मों ने भी माना है।
ॐ, इस शब्द को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र और धार्मिक माना गया है। हिंदू धर्म और शास्त्र में कुछ बिना ॐ शब्द के अधूरा माना गया है। पूजा किसी भी देवी या देवता की हो ॐ शब्द का उच्चारण सबसे पहले किया जाता है। हिंदू धर्म में हर पवित्र मंत्र में ॐ शब्द का प्रयोग जरूर किया गया है। शास्त्रों के अनुसार ॐ शब्द को भगवान शिव का अति प्रिय माना गया है। विज्ञान ने भी इस शब्द को मेडिकेटेड माना है। ॐ शब्द के उच्चारण मात्र से निकलने वाली ध्वनि आपके मन को शांत करती है और आपको कई रोगों से मुक्त करती है। इस शब्द में बहुत शक्ति है। तो चलिए जानते हैं कि ॐ शब्द का उच्चारण करने का सही तरीका क्या है? और इस शब्द को किस समय बोलने से इसका अच्छा असर होता है।
सबसे पहले यह जान लें कि ॐ अपने आप में एक सम्पूर्ण मंत्र है। यह मंत्र छोटा और आसान नजर आता है उतना ही मुश्किल इसका उच्चारण होता है। अमूमन लोग ॐ का गलत उच्चारण करते हैं। गौरतलब है कि हिंदू धर्म (हिंदू धर्म में इस मंत्र का क्यों है महत्व)में किसी भी मंत्र का गलत उच्चारण करने से इसका बुरा असर पड़ता है। तो चलिए हम बाताते हैं कि आप जब ॐ मंत्र का जाप करें तो इसका उच्चारण कैसे करें। ॐ शब्द तीन अक्षरों से मिल कर बना है। यह अक्षर है अ, उ और म। इसमें अ का अर्थ है उत्पन्न करना, उ का मतलब है उठाना और म का अर्थ है मौन रहना। यानि जब यह तीनों शब्द मिलते हैं तो उसका आश्य होता है ब्रह्मलीन होजाना। इसलिए आप जब भी ॐ का उच्चारण करें तो इन तीन अक्षरों को ध्यान में रख कर करें।
ॐ शब्द का उच्चारण करते वक्त एक विशेष ध्वनि उत्पन्न होती है। जिससे शरीर के अलग-अलग भाग में कंपन होता है। जब आप उ बोलते हैं तो आपके शरीर के मध्य भाग में कंपन होता है। इससे आपके सीने , फेफड़ों और पेट पर बहुत अच्छा असर पड़ता है। वहीं जब आप म बोलते हैं तो इसकी ध्वनि से मस्तिस्क में कंपन होता है। इससे दिमाग की सारी नसे खुल जाती हैं। शरीर के महत्वपूर्ण ऑर्गेंस इन्हीं दोनों हिस्सों में होते हैं। ॐ के स्वर से जो कंपन होता है वह शरीर को अंदर से शुद्ध करता है। इतना ही नहीं यह आपकी स्मरण शक्ति और ध्यान लगाने की क्षमता को सुधारता है। ॐ के उच्चारण से आपको मानसिक शांति मिलती है। इस शब्द का स्वर इतना पवित्र होता है कि यदि आप तनव में हैं तो वह भी दूर हो जाता है। यह शब्द आपके सोचने समझने के तरीके को बदलता है और आपको छोटी-छोटी परेशानियों से बाहर निकलने का रास्ता बताता है।
हर चीज को करने का एक सही समय होता है। किसी भी मंत्र के उच्चारण का भी एक समय होता है। अगर आप किसी भी मंत्र को बेटाइम ही बोलना शुरू कर देंगे तो शायद इसका अच्छा नहीं बुरा असर पड़े। इसी तरह ॐ मंत्र को बोलने का एक सही समय होता है। अगर आप ॐ का उच्चारण करना चाहती हैं और इसके लाभ उठाना चाहती हैं तो आपको सुबह सूर्य उदय होने से पूर्व किसी शांत जगह पर सुखासन मूद्रा में बैठ कर ॐ का उच्चारण करना चाहिए। ध्यान रहे कि जब आप ॐ का उच्चारण करें तो इसकी संख्या 108 होनी चाहिए।