हिन्दू धर्म मे सावन का महीने को काफी पवित्र माना गया है। सावन का महीने में भगवान शिव की पूजा का महत्व बढ़ जाता है इसी महीने में शिव भक्त कांवरिये दूर दूर से हरिद्वार, नील-कंठ, गो-मुख पहुँच कर शिव शंकर की आराधना करते है और वहां से पवित्र गंगा जल लेकर पैदल ही अपने अपने शहर की तरफ चल देते है और रास्ते मे बम बम भोले, जय शिव शंकर के नारे लगाते है और फिर सावन शिवरात्रि पर भोले शंकर पर जल चढ़ाते है।
इसके साथ सावन के महीने में हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्यौहार जैसे कि हरियाली तीज और रक्षाबंधन भी आते है और यह भी कहा जाता है कि सावन के महीने का अंत रक्षाबन्धन के त्यौहार के साथ होता है।
शिव शंकर की आराधना
इस पूरे महीने में शिव शंकर की पूजा करी जाती है और काफी भक्त सावन में आने वाले सोमवार का व्रत भी रखते है। इस पावन माह में शिव शंकर की पूजा को काफी शुभ लाभ देने वाला भी मन गया है। भगवान शिव को बेल पत्र, धतूरा इत्यादि चढ़ाया जाता है। यह बात प्रचलित है कि भगवान भोले नाथ अपने भक्तों की बात जल्दी सुन लेते है और उन्हें अपना आशीर्वाद दे देते है।
शिव तांडव स्त्रोत
लंका के राजा रावण को शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। कहा जाता है कि रावण महान विद्वान और शिव के परम् भक्त भीथे। शिव तांडव स्त्रोत की रचना रावण के द्वारा ही करी गयी थी।
रावण ऋषि विश्रवा के पुत्र थे और कुबेर उनके सौतेले भाई थे। उनके पिता ने लंका का राजपाट कुबेर को सौंप दिया था लेकिन किसी वजह से वो पिता की आज्ञा से लंका को छोड़ हिमालय चले गए। लंका का आधिपति बनने के बाद रावण में अंहकार घर करने लगा। और धीरे धीरे सबको अपने कब्जे में करने लगा।
एक बार रावण अपने पुष्पक विमान में सवार होकर जा रहा तभी कैलाश पर्वत की तरफ पहुँच कर उंसके विमान की गति धीमी हो गयी तभी उनकी नजर नंदी पर पड़ी। नंदी ने उन्हें कहा कि यहां प्रभु शिव का वास है इसलिए वो यहां से चला जाये लेकिन अपनी शक्ति के नशे में चूर रावण किसी की बात मानने को तैयार नही था। और उसने कहा कि कौन है यह शिव शंकर। इतना कहकर उसने कैलाश पर्वत को उठा लिया और उसके इस कृत्य से भगवान भोलेनाथ विचलित हो उठे और अपने आसान पर बैठे हुए ही उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया। ऐसा करने से रावण की बाजू कैलाश पर्वत में दब गई। जिसके परिणामस्वरूप रावण अत्यधिक दर्द से कराह उठा।
तभी लंकेश के मंत्री ने उन्हें शिव की आराधना करने के सलाह दी। जिसके बाद रावण ने सामवेद में उल्लेखित शिव के स्त्रोतों को गाया। ऐसा कहा जाता है कि रावण 1000 वर्षो तक इस स्त्रोत का गान करता रहा। जिसके बाद भगवान ने प्रसन्न होकर रावण की बाजू को मुक्त कर दिया।
रावण के द्वारा गए जाने के कारण ही इस स्रोत को रावण स्त्रोत या शिव तांडव स्त्रोत कहा जाता है।
सावन में शिव तांडव स्त्रोत
शिव तांडव स्त्रोत को भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए बेहद खास माना गया है। शिव तांडव स्त्रोत के काफी लाभ होते है।