May 2, 2019 Blog

क्या आप पर भी है मेष लग्न की साढ़े साती, पढ़ें ये खबर

BY : Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer

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शनि के फलों का विभिन्न दृष्टियों से अध्ययन किया गया है जिसमें सामने आया है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी और पुरुष प्रधान ग्रह है. शनि का वाहन गिद्ध है और इसका दिन शनिवार है. इसका स्वाद कसैला और इसकी प्रिय वस्तु लोहा है.

शनि राजदूत, सेवक, पैर के दर्द और कानून और शिल्प, दर्शन, तंत्र, मंत्र और यंत्र विद्याओं का कारक है. ऊसर भूमि इसका वास स्थान है और इसका रंग काला है. यह जातक के स्नायु तंत्र को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. यह मुख्य रूप से मकर और कुंभ राशियों का स्वामी है और मृत्यु का देवता है. यह ब्रह्म ज्ञान का कारक भी है और इसलिए शनि प्रधान लोग सन्यास ले लेते हैं.

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शनि को सूर्य का पुत्र माना जाता है. इसकी माता छाया और मित्र राहु और बुद्ध माने जाते हैं. राहु और बुद्ध ही शनि के दोष को दूर करने की क्षमता रखते हैं. शनि को दंडकारी भी माना जाता है. यही कारण है कि शनि साढ़े साती के विभिन्न चरणों में जातक को कर्मानुकूल फल देकर उसकी उन्नति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है.

कृषक, मजदूर और न्याय विभाग पर भी शनि ही अधिकृत होता है. अगर गोचर में शनि बली होता है तो इससे संबंद्धित लोगों की भी उन्नति होती है. कुंडली के विभिन्न भावों में शनि की स्थिति से शुभ अशुभ फल- शनि 3, 6, 10 और 11 का भाव शुभ प्रभाव का प्रतीक होता है.

वहीं यदि शनि प्रथम, द्वितीय, पंचम, या सप्तम भाव में हो तो अरिष्टकर होता है. चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में शनि के होने पर प्रबल अरिष्टकारक होता है. अगर जातक का जन्म शुक्ल पक्ष की रात में हुआ हो और उस समय शनि वक्री रहा हो तो शनि बलवान होता है और शुभ फल देता है.

शनि, सूरज के साथ 15 अंश के भीतर रहने पर ज्यादा बलवान हो जाता है. जातक की 36 और 42 वर्ष की उम्र में शनि अति बलवान होकर शुभ फल देता है. बाकि के वक्त में शनि की महादशा और अंतर्दशा कल्याणकारी होती है. शनि निम्नवर्गीय लोगों को लाभ देने वाला और उनकी उन्नति का कारक होता है.

शनि हस्त कला, दास कर्म, लौह कर्म, प्लास्टिक उद्योग, रबर उद्योग, ऊन उद्योग, कालीन निर्माण, वस्त्र निर्माण, लघु उद्योग, चिकित्सा, पुस्तकालय, जिल्दसाजी, शस्त्र निर्माण, कागज उद्योग, पशुपालन, भवन निर्माण, विज्ञान, शिकार आदि से जुड़े लोगों की मदद करता है.

यह कारीगरों, कुलियों, डाकियों, जेल अधिकारियों, वाहन चालकों आदि को लाभ पहुंचाता है और वन्य जन्तुओं की रक्षा करता है. शनि से मिलने वाले अन्य लाभ शनि और बुध की युति जातक को अन्वेषक बनाते हैं. चतुर्थेश शनि बलवान हो तो जातक को भूमि का भी लाभ मिलता है.

लग्नेश और अष्टमेश शनि बलवान हो तो जातक दीर्घायु होता है. तुला, धनु, और मीन का शनि लग्न में हो तो जातक धनवान होता है. वृष और तुला लग्न वालो को शनि हमेशा शुभ फल प्रदान करता है. वृष लग्न के लिए अकेला शनि राजयोग प्रदान करता है. कन्या लग्न के जातक को अष्टमस्थ शनि प्रचुर मात्रा में धन देता है और वक्री हो तो अपार संपति का स्वामी बनाता है.
मेष लग्न की कुंडली में बारह भावों में शनि का फलादेश

मेष लग्न- प्रथम भाव में शनि- मेष राशि को शनि देव की नीच राशि माना जाता है. इसलिए शनि की महादशा में काम काज बंद हो सकता है या फिर बदल सकता है. छोटे भाई, पत्नी, पार्टनर से न बनने की भी समस्या हो सकती है. सिर में चोट लग सकती है. मेहनत अधिक करते हैं लेकिन परिणाम न के बराबर मिलते हैं.

मेष लग्न- द्वितीय भाव- ऐसे जातक को धन, परिवार कुटुंब का साथ मिलता है. इनकी वाणी उग्र होती है. माता, मकान, वाहन, भूमि से परेशानी हो सकती है. जीवन में एक के बाद एक रुकावटे आती रहती हैं.

मेष लग्न- तृतीय भाव- जातक काफी परिश्रमी होता है. जातक का भाग्या उसका साथ नहीं देता. छोटी बहन का योग बनता है. पेट खराब, कमजोर याददाश्त, संतान को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. पिता से नहीं बनती, फिजुल खर्च और विदेश यात्रा होती है.

मेष लग्न- चतुर्थ भाव- जातक की भूमि, मकान, वाहन का सुख बहुत वक्त के बाद पूरा होता है. माता को कष्टों का सामना करना पड़ता है. काम काज शनि देव से जुड़ा होता है और बेहतर स्थिति में होता है. प्रतियोगिताओं में विजय देर से मिलती है.

मेष लग्न- पंचम भाव- पुत्री का योग होता है. अचानक हानि की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. जातक की याददाश्त कमजोर हो जाती है. देरी से विवाह होता है. बड़े भाई- बहनों से नहीं बनती. पत्नी के साथ संबंध अच्छे नहीं रहते. बड़े भाइयों-बहनों से संबंध बेहतर होते हैं. मनचाहे काम को पूरा करने में काफी वक्त लगता है. धन का अभाव रहता है.

मेष लग्न- षष्टम भाव- काफी मेहनत करने पर भी परिणाम नकारात्मक रहते हैं. लोन वापसी का रास्ता नजर नहीं आथा, फिजुल व्यय, हर काम में रुकावटें आने लगती हैं.

मेष लग्न- सप्तम भाव- उच्च राशिस्थ होने बुद्धि अच्छी होती है और साझेदारों से सीधे लाभ मिलता है. जातक पितृ भक्त, न्यायप्रिय होता है. मकान, वाहन, संपत्ति का सुख भी प्राप्त होता है और माता का आशिर्वाद हमेशा बना रहता है.

मेष लग्न- अष्टम भाव- जातक के सभी कामों में रुकावट आती है. टेंशन बढ़ने लगती है. परिवार साथ नहीं देता. काम काज ठप हो जाते हैं. संतान को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. याददाश्त कमजोर हो जाती है.

मेष लग्न- नवम भाव- पिता के साथ काम करने पर लाभ होता है विदेश यात्रा का मौका मिलता है. भूमि, मकान, वाहन का सुख भी प्राप्त होता है. माता के सुख में कमी आती है.

मेष लग्न- दशम भाव- जातक का कामकाज अच्छा होता है. भूमि, मकान, वाहन का सुख देर से मिलता है.

मेष लग्न- एकादश भाव- जातक चिड़चिड़े स्वभाव का होता है. बड़े भाई बहनों के साथ स्नेह बना रहता है. पुत्री प्राप्ति का योग बनता है. याददाश्त कमजोर हो जाती है. लव अफेयर के कारण डिप्रेशन में जाने का खतरा होता है. रुकावटों से रूबरू होते रहना पड़ता है.

मेष लग्न- द्वादश भाव- विदेश में सेटल होने का योग बनता है. काम काज ठप हो जाता है. कोर्ट केस चलने की संभावना रहती है. परिवार का साथ नहीं मिलता. जातक नास्तिक होता है और पिता के साथ नहीं बनती.

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Author: Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer

Dr. Sandeep Ahuja, an Ayurvedic doctor with 14 years’ experience, blends holistic health, astrology, and Ayurveda, sharing wellness practices that restore mind-body balance and spiritual harmony.