हर वर्ग के लोग इस त्यौहार को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं। इस दिन सभी एक-दूसरे के आपसी मतभेदों को भुलाकर गुलाल आदि लगाते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं। इस त्यौहार को किसानों के लिए भी ख़ास माना जाता है, क्योंकि इस दिन से किसान अपनी फसलों के पकने का इन्तजार करने लगते हैं। दरअसल होली से गेंहूँ की फसल पकनी शुरू हो जाती है। इसलिए होली के दिन किसान जौ की कुछ बालियाँ भूनकर उन्हें प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं। क्योंकि अन्न को होला भी कहा जाता है इसलिए होला जलाने की इस प्रक्रिया को भी होलिका के नाम से जाना जाता है।
आखिर कब मनायी जाती है होली?
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली मनायी जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इस दिन मनायी जाने वाली होली को छोटी होली भी कहा जाता है। रंग वाली होली इसके ठीक अगले दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनायी जाती है। इस दिन गुलाल आदि लगाकर एक दूसरे के गले मिलते हैं। पहले फूल आदि के उपयोग से प्राकृतिक रंग बनाने का चलन था। लेकीन अब बाज़ार में तरह-तरह के सिंथेटिक रंग मौजूद हैं। इनमें मौजूद केमिकल्स को ध्यान में रखते हुए हमें इनका कम-से-कम इस्तेमाल करना चाहिए। होली को बसंतोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
इस दिन महिलाएं उनके घर में सुख-शांति हेतु होली की पूजा-अर्चना करती हैं। बहुत पहले से ही इस त्यौहार की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। इस दौरान इकट्ठी की गयी लकड़ियों आदि को शुभ मुहूर्त देखते ही होलिका दहन में डाल दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन करने से घर में मौजूद नकारात्मकता दूर होती है।
शुभ मुहूर्त-
इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा यानि कि होलिका दहन 20 मार्च को होगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात करीब 9:00 बजे से लेकर मध्यरात्रि तक रहेगा।
भद्रा पूंछ- 5:35 से 6:35 तक।
भद्रा मुख- 6:35 से 8:17 तक।
इस वर्ष 2019 रंगवाली होली यानि कि धुलेंडी 21 मार्च को मनायी जाएगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार 14 मार्च 2019 गुरूवार से होलाष्टक प्रारंभ हो जाएगा।
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 20 मार्च 2019, गुरूवार 10:44 बजे।
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 21 मार्च 2019, शुक्रवार 7:12 बजे।
होलिका दहन के नियम-
पूजा की विधि-
होलिका दहन की पूजा के दौरान पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठना चाहिए। कच्चे सूत को लेकर होलिका की परिक्रमा करते हुए तीन अथवा सात चक्करों में होलिका के चारों ओर उसे लपेटना चाहिए। पूजा में इस्तेमाल होने वाली समस्त सामाग्रियां जैसे जल, रोली, फूल, हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, चावल, गुड़ आदि को होलिका को अर्पित करना चाहिए। पूजा होने के पश्चात जल से अर्ध्य दिया जाता है। होलिका दहन के दौरान कच्चे आम, नारियल, नयी फसल जैसे गेंहू की बालियाँ आदि की आहुति दी जाती है।
होली और इतिहास-
होली के त्यौहार का उल्लेख प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में मिले 16वीं शताब्दी के दौरान बनाये गये एक चित्र में देखने को मिलता है। ठीक इसी तरह विंध्य पर्वतों के पास मौजूद रामगढ़ में मिले ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी होली के पर्व का उल्लेख मिलता है।
Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.