March 5, 2019 Blog

जानिये क्या कहती हैं होली के त्यौहार से जुड़ी अलग-अलग पौराणिक कथाएं

BY : Neha Jain – Cultural & Festival Content Writer

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होली यानी कि रंगों का त्यौहार जिसे पूरे देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैहोलिका दहन के पश्चात सभी लोग अपने-अपने घरों से निकलकर अपने मित्रों और सगे-सम्बन्धियों के साथ बड़ी धूमधाम से इस पर्व का शुभारम्भ करते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाये जाने वाले इस त्यौहार को कई स्थानों पर रंग पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में इसे मनाने के पीछे अलग-अलग पौराणिक कथाएं दी गयी हैं। आइये विस्तार से जानते हैं ऐसी ही कुछ कथाओं के बारे में जिनमें होली के पर्व का उद्गम देखने को मिलता है।


  • शिव पुराण से जुड़ी कथा- इस कथा का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से जुड़ा हुआ है। कथानुसार हिमालय की पुत्री माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। परन्तु भोलेनाथ सदैव की तरह अपनी तपस्या में लीन थे। इनके विवाह के पीछे इंद्र का भी स्वार्थ छिपा हुआ था। दरअसल ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र के हाथों लिखा हुआ था और ऐसी स्थिति में इंद्र की बस एक ही इच्छा थी कि किसी तरह यह दोनों विवाह के बंधन में बंध जायें। इसी इच्छा के चलते उन्होंने पार्वती की सहायता करने के लिए कामदेव को भेजा। कामदेव पुष्प बाण की मदद से भगवान शिव की तपस्या भंग कर देते हैं। इस बात से नाराज़ भोलेनाथ अपनी तीसरी आँख खोलते हैं और क्रोध में आकर उन्हें भस्म कर देते हैं। हालाँकि तपस्या भंग होने के बाद वह देवताओं के आग्रह पर माता पार्वती से विवाह करने के लिए राज़ी हो जाते हैं। तब से ऐसा माना जाता है कि इस त्यौहार को सच्चे प्रेम की विजय के उत्सव में मनाया जाता है और कामवासना को अग्नि में जलाकर निष्काम भाव से प्रेम करने का संकल्प लिया जाता है।  

इस कथा का दूसरा पहलू कुछ इस तरह है कि कामदेव के भस्म होने के बाद उनकी पत्नी रति भगवान शिव की आराधना करके उन्हें प्रसन्न कर देती हैं। वह शिव से कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्राथना करती हैं जिसे भोलेनाथ स्वीकार कर लेते हैं। जिस दिन यह घटना घटी उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा अर्थात होली का दिन माना जाता है। कथा के अनुसार जिस दिन कामदेव पुनर्जीवित हुए उसके अगले दिन से रंगों का त्यौहार यानि कि होली मनायी जाने लगी।



  • राक्षसी पूतना का वध- होली की एक और कथा कुछ इस प्रकार है कि जब वसुदेव और देवकी का विवाह हुआ तब आकाशवाणी के माध्यम से कंस को यह जानकारी मिली कि उनकी आठवीं संतान उसकी मौत का कारण बनेगी। यह पता चलते ही कंस ने उन दोनों को कारावास में डाल दिया। जब उनके आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण ने अवतार लिया तो उन्होंने रात्री के दौरान उन्हें गोकुल में नन्द और यशोदा के घर पहुँचा दिया। एक बार पुनः आकाशवाणी हुयी कि कंस को मारने का जन्म गोकुल में हो चुका है। यह ज्ञात होते ही कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए राक्षसी पूतना को बुलाया और उसे आदेश दिया कि उस दिन जितने भी शिशुओं ने गोकुल में जन्म लिया है सबकी हत्या कर दो। पूतना ने एक-एक करके बच्चों को विष का स्तनपान करवाना शुरू किया जिससे उनकी मृत्यु होती गयी। लेकिन जब वह श्रीकृष्ण के पास पहुँची तो उन्होंने पूतना का वध कर दिया। उस दिन फाल्गुन की पूर्णिमा थी। इस तरह बुराई का अंत होने की ख़ुशी में होली का पर्व मनाया जाने लगा। गौरतलब है कि मथुरा-वृंदावन में हर वर्ष होली को अत्याधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है।

  • राक्षसी ढुंढी और उसका वध- कहानी के अनुसार राजा पृथु के शासनकाल में एक ढुंढी नाम की बेहद खतरनाक राक्षसी थी। वह इतनी पापी थी कि नवजात शिशुओं को तक खा जाया करती थी। उसे वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता, मानव, अस्त्र और शस्त्र उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। और न ही सर्दी, गर्मी, और वर्षा आदि का उसपर कोई असर हो सकता है। उसके अत्याचारों से पूरी प्रजा मानों खौफ में जी रही थी। उसकी बस एक ही कमजोरी थी। भगवान शिव का वह शाप जिसके अनुसार बच्चे उसके वध का कारण बन सकते थे। राजा के राजपुरोहित ने राक्षसी को खत्म करने का एक उपाय बताया। जिसके अनुसार यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन, जब सर्दी और गर्मी सामान रूप से मौजूद होगी, तब यदि राज्य के बच्चे एक-एक लकड़ी लाकर एक स्थान पर रखेंगे और उन्हें जलाने के बाद मंत्रोच्चारण करते हुए अग्नि की परिक्रमा करेंगे तो राक्षसी का अंत हो जाएगा। ठीक ऐसा ही हुआ। बच्चों ने साथ मिलकर सबको ढुंढी के आतंक से मुक्ति दिला दी और उस दिन के बाद से होली का त्यौहार मनाया जाए लगा।   

  • प्रह्लाद और होलिका- भक्त प्रह्लाद की कथा को होली की कथाओं में सबसे प्रचिलित माना जाता है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशय को यह वरदान प्राप्त था कि वह न धरती पर मरेगा न आसमान में, न दिन में मरेगा न रात में, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न बाहर मरेगा न ही घर में, न कोई पशु उसे मार सकेगा न ही इंसान। इस वरदान के चलते वह खुद को अमर समझने लगा और लोगों को उसे भगवान मानने पर मजबूर करने लगा। परन्तु उसका स्वयं का पुत्र प्रह्लाद उसके खिलाफ हो गया। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका के साथ एक योजना बनायी। वह प्रह्लाद को मारने के लिए उसे लेकर अग्नि में बैठ गयी। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद तो बच गया लेकिन दुष्ट होलिका अग्नि में भस्म हो गयी। तभी से होली के त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानकर मनाया जाने लगा।

  • राधा और कृष्ण-  होली का त्यौहार मनाने का एक कारण राधा और कृष्ण के प्रेम से भी जुड़ा हुआ है। श्रीकृष्ण लीला में बसंत के दौरान एक-दूसरे पर रंग डालने का चलन देखने को मिलता है। इसलिए राधा-कृष्ण के प्रेम को आधार मानते हुए मथुरा-वृन्दावन में लट्ठमार होली का भव्य आयोजन किया जाता है। 
Author: Neha Jain – Cultural & Festival Content Writer

Neha Jain is a festival writer with 7+ years’ experience explaining Indian rituals, traditions, and their cultural meaning, making complex customs accessible and engaging for today’s modern readers.