शिव चालीसा
Starzspeak :
दोहा
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
श्री अयोध्यादास जी शिव चालीसा के रचयिता हैं और रचना प्रारम्भ करने से पहले गणेश जी की वंदना करते हुए लिखते हैं कि जो समस्त मंगल कार्याें के ज्ञाता हैं उन गौरीपुत्र गणेश जी की जय हो! हे गणेश जी! इस कार्य को निर्विघ्न समाप्त करने का वरदान देें।
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥
जो दीन-जनों पर कृपा करने वाले हैं और संत-जनों की सदा ही रक्षा करते हैं ऐसे (गिरिजा) के पति शंकर भगवान की जय हो।आपके मस्तक पर चन्द्रमा शोभित हैं और कानों में नागफनी के कुण्डल सुशोभित हैं।
अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥
आपका रंग गौर वर्ण का है और सिर की जटाओं में से गंगाजी बह रही हैं, गले में मुण्डों की माला है और शरीर पर भस्मी लगा रखी है।शरीर पर शेर की खाल वस्त्रों का का देती है, उनकी यह वेषभूषा देखकर सब नर-नारी श्रद्धा से शीश झुकाते हैं।
मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
मैना की दुलारी अर्थात् उनकी पुत्री पार्वतीजी उनके बायें भाग में सुशोभित हो रही हैं। आपके हाथ में त्रिशूल शोभायमान हो रहा है। आप अपने इस प्रलयंकारी त्रिशूल से सदैव दुष्टों और शत्रुओं का संहार करते हैं।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥
भगवान शंकर के समीप नंदी व गणेश जी ऐसे सुंदर लगते हैं, जैसे सागर के मध्य कमल शोभायमान होता है।
श्याम वर्ण कार्तिकेय तथा गौर वर्ण श्री गणेशजी की छवि का बखान करना किसी के लिए भी सम्भव नहीं है।
श्याम वर्ण कार्तिकेय तथा गौर वर्ण श्री गणेशजी की छवि का बखान करना किसी के लिए भी सम्भव नहीं है।
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
देवताओं ने जब भी सहायता की पुकार की हे नाथ! आपने तुरंत ही उनके दुख दूर किए।जब ताड़कासुर नामक राक्षस ने देवताओं पर तरह-तरह के उपद्रव (अत्याचार) करना प्रारम्भ किया तो सभी देवतागण उससे छुटकारा पाने के लिए आपकी शरण में दौड़े चले आए।
तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
देवताओें की प्रार्थना को मानते हुए आपने उसी समय स्वामी कार्तिकेय को भेजा और उन्होंने जाकर शिवजी की दी हुयी शक्ति से उस पापी राक्षस को मार डाला।आपने जलंधर नामक भयंकर राक्षस का संहार किया उससे आपका जो यश फैला, उससे सारा संसार परिचित है।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
आपने त्रिपुर नामक भयंकर राक्षस से युद्ध करके सभी देवताओं पर कृपा की और उनको बचा लिया।जब ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए महान तप किया तब आपने ही अपनी जटाओं से गंगा की धारा को छोड़कर उनकी प्रतिज्ञा पूरी की थी।
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
संसार के सभी दानियों में आपके समान बड़ा कोई दानी नहीं है। भक्त आपकी सदा ही वन्दना करते रहते हैं।
आपके अनादि (प्राचीन) होने का भेद कोई बता नहीं सका। वेदों में भी आपके नाम की महिमा गाई गई है।
आपके अनादि (प्राचीन) होने का भेद कोई बता नहीं सका। वेदों में भी आपके नाम की महिमा गाई गई है।
कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
जब समुद्र का मंथन हो रहा था तब उसमें से अमृत के साथ विष की ज्वाला भी निकली। उस विष रूपी ज्वाला की लपट से देवतागण और दानव दोनों जलने लगे तथा जलन से व्याकुल हो उठे।
उस संकट की घड़ी में केवल आप ही उनकी सहायता के लिए पहुंचे और सारा विष पीकर उनकी जान बचाई। इसी विष को पीने से आपका सारा शरीर नीला हो गया जिसके कारण आपको “नीलकंठ“ कहा जाने लगा।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
लंका पर चढ़ाई के समय में जब श्रीरामचन्द्र जी ने आपकी पूजा की तो आपकी कृपा से ही उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त की और विभीषण को लंका का राजा बना दिया। जब श्रीरामचन्द्रजी सहस्त्र कमलों के द्वारा आपकी पूजा कर रहे थे तो हे भोलेनाथ! अपनी माया के प्रभाव से उनकी परीक्षा ली।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
आपने एक कमल का फूल अपनी माया से लुप्त कर लिया तो उनहोंने कमल के फूल के स्थान पर अपने नयन रूपी पुष्प से पूजन करना चाहा।जब आपने राघवेन्द्र की इस प्रकार की कठोर भक्ति देखी तो प्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित वर प्रदान किया।
जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥
जो अनन्त हैं और जो अविनाशी हैं, ऐसे भगवान शंकर की जय हो, जय हो, जय जय हो। सबके हृदय में निवास करनेवाले आप सब पर कृपा करते हैं। दुष्ट विचार सैदव मुझे सताते रहते हैं, जिससे मेरा मन हमेशा भ्रमित रहता है और मुझे क्षणमात्र भी चैन नहीं मिलता।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥
हे भोलेनाथ! बस मैं इन चीजों से ही तंग होकर आपकी शरण में आया हूं। इस संकट के समय आप ही मेरा उद्धार कर सकते हैं।
अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं को नष्ट करें और संकट से मेरा उद्धार करें।
अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं को नष्ट करें और संकट से मेरा उद्धार करें।
मातु पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥
माता-पिता और भाई इत्यादि सम्बन्धी सब सुख में ही साथी होते हैं। संकट आने पर कोई पूछता भी नहीं है।
हे जगत के स्वामी! आप ही ऐसे हैं जिस पर मुझे आशा लगी हुई है। आप शीघ्र ही आकर मेरे इस घोर संकट को दूर कीजिए।
हे जगत के स्वामी! आप ही ऐसे हैं जिस पर मुझे आशा लगी हुई है। आप शीघ्र ही आकर मेरे इस घोर संकट को दूर कीजिए।
धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
आप हमेशा गरीब व निर्धन व्यक्तियों को धन देकर उनकी सहायता करते हैं। जो कोई आपकी जैसी भक्ति करता है वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है। हे नाथ! मैं किस प्रकार आपकी पूजा अर्चना करूं, यह मुझे नहीं मालूम है, अतः अगर आपके पूजन अर्चन में कोई भूल हो तो आप हमें माफ कर दीजिएगा।
शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं ॥
भोलेनाथ! आप ही संकटों से मुक्त करवाने वाले हैं सारे शुभ काम आपका नाम लेने से पूरे हो जाते हैं।
योगीजन, यति व मुनिजन सदा आपका ही ध्यान करते हैं। नारद और सरस्वती भी आपको ही शीश नवाते हैं।
योगीजन, यति व मुनिजन सदा आपका ही ध्यान करते हैं। नारद और सरस्वती भी आपको ही शीश नवाते हैं।
नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई ॥
आपके स्मरण का मूल “ऊं नमः शिवाय“ है। इस मन्त्र का जप करके भी आदि देवता आपका पार नहीं पा सके।
जो व्यक्ति इस शिव चालीसा का मन लगाकर निष्ठा से पाठ करता है भगवान शंकर अवश्य ही उसकी सहायता करते हैं।
जो व्यक्ति इस शिव चालीसा का मन लगाकर निष्ठा से पाठ करता है भगवान शंकर अवश्य ही उसकी सहायता करते हैं।
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
जो कोई भी प्राणी कर्ज के बोझ से दबा हुआ हो, वह अगर सच्चे मन से आपके नाम का जाप करे तो शीघ्र ही वह ऋण के बोझ से मुक्त हो जाता है।पुत्रहीन व्यक्ति यदि पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इसका पाठ करेगा तो निश्चय ही शिव की कृपा से उसे पुत्र प्राप्त होगा।
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥
प्रत्येक मास की त्रयोदशी को घर पर पण्डित को बुलाकर श्रद्धापूर्वक पूजन व हवन करवाना चाहिए।जो प्रत्येक त्रयोदशी को आपका व्रत रखता है, उसके शरीर में कोई रोग नहीं रहता और किसी प्रकार के क्लेश की भावना भी उसके मन में नहीं आती।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥
धूप, दीप और से पूजन करके शंकरजी की मूर्ति के सामने बैठकर यह पाठ करना चाहिए। शिव चालीसा का पाठ करके जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मनुष्य शिवजी के पास वास करने लगता है अर्थात मुक्त हो जाता है।
कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
अयोध्या दास जी कहते हैं कि हे शंकरजी! हमें आपकी ही आशा है। मेरे समस्त दुःखों को दूर कर आप हमारी मनोकामना पूर्ण करें।
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान । अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
प्रातःकाल के नित्यकर्म के पश्चात् शिव चालीसा बार प्रतिदिन पाठ करने से मनोकामना पूर्ण करेंगे। हेमंत ऋतु, मार्गशीर्ष मास की छठी तिथि संवत चौंसठ में यह चालीसा रूपी शिव स्तुति लोक कल्याण के लिए पूर्ण हुई।
॥ इति शिव चालीसा ॥