श्रीमद् आरती (Srimad Aarti)

श्रीमद् आरती

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श्रीमद्भागवतमहापुराण आरती का महत्व उसमें सुनाई गई कथाओं और भगवान विष्णु के लीलाओं को याद दिलाने के साथ-साथ उनके गुणों का भी वर्णन करता है। यह आरती सभी दोहों और छंदों में गाई जाती है और श्रीकृष्ण भगवान के समर्पित है।

इस आरती में भगवान विष्णु के साथ-साथ उनके अवतारों जैसे श्रीकृष्ण, श्रीराम, नृसिंह भगवान आदि का भी उल्लेख किया गया है। इस आरती में भगवान के गुणों का वर्णन किया गया है जैसे कि उनकी कृपा, शांति, संतुष्टि, ज्ञान, विवेक, धैर्य आदि।

इस आरती का महत्व है कि यह भगवान विष्णु की महिमा को याद दिलाती है और उनके द्वारा स्थापित धर्म के लिए प्रार्थना करती है। इसके अलावा इस आरती को सुनने से मन और आत्मा शुद्ध होती है और इंसान के जीवन में सकारात्मकता आती है।

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श्रीमद्भागवतमहापुराण आरती
आरती अतिपावन पुराण की ।
धर्म-भक्ति-विज्ञान-खान की ॥
 
महापुराण भागवत निर्मल ।
शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल ॥
 
परमानन्द सुधा-रसमय कल ।
लीला-रति-रस रसनिधान की ॥
 
॥ आरती अतिपावन पुरान की ॥
 
कलिमथ-मथनि त्रिताप-निवारिणि ।
जन्म-मृत्यु भव-भयहारिणी ॥
 
सेवत सतत सकल सुखकारिणि ।
सुमहौषधि हरि-चरित गान की ॥
 
॥ आरती अतिपावन पुरान की ॥
 
विषय-विलास-विमोह विनाशिनि ।
विमल-विराग-विवेक विकासिनि ॥
 
भगवत्-तत्त्व-रहस्य-प्रकाशिनि ।
परम ज्योति परमात्मज्ञान की ॥
 
॥ आरती अतिपावन पुरान की ॥
 
परमहंस-मुनि-मन उल्लासिनि ।
रसिक-हृदय-रस-रासविलासिनि ॥
 
भुक्ति-मुक्ति-रति-प्रेम सुदासिनि ।
कथा अकिंचन प्रिय सुजान की ॥
 
॥ आरती अतिपावन पुरान की ॥
॥ इति श्रीमद्भागवतमहापुराण की आरती ॥