शनि देव आरती (Shani Dev Aarti)

शनि देव आरती

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जय जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी |
 
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी ||
जय जय जय शनि देव ||

aarti-detail

 

श्याम अंग वक्र दृष्टि चतुर्भुजा धारी |
 
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ||
जय जय जय शनि देव ||
 
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी |
 
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ||
जय जय जय शनि देव ||
 
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी |
 
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ||
जय जय जय शनि देव ||
 
देव दनुज ऋषि मुनी सुमीरत नर नारी |
 
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण है तुम्हारी ||
जय जय जय शनि देव ||

 

शनि देव जी की आरती उन्हें समर्पित की जाने वाली प्रार्थना है जो उनकी कृपा, अनुग्रह और आशीर्वाद को आमंत्रित करती है। आरती उन्हें प्रसन्न करने के साथ-साथ उनकी क्रोधग्रस्तता से भी रक्षा करती है। शनि देव की आरती करने से उनकी क्रोधग्रस्तता, बुराई, नकारात्मक ऊर्जा आदि कम होती है और शुभता, समृद्धि, संपत्ति, स्वस्थता और उत्तम समस्या समाधान के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

शनि देव की आरती को समय-समय पर रोजाना करना चाहिए। शनि देव की आरती में उनकी जय-जयकार, अभिवादन, आशीर्वाद और स्तुति की गई होती है। इसके अलावा, शनि देव की आरती करने से उनके भक्तों के मन में शांति, समृद्धि, संपत्ति और सुख का भाव उत्पन्न होता है।

 

श्री शनि देव चालीसा Shri Shani Chalisa
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। 
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

 

” हे माता पार्वती के पुत्र भगवान श्री गणेश, आपकी जय हो। आप कल्याणकारी है, सब पर कृपा करने वाले हैं, दीन लोगों के दुख दुर कर उन्हें खुशहाल करें भगवन।

 

हे भगवान श्री शनिदेव जी आपकी जय हो, हे प्रभु, हमारी प्रार्थना सुनें, हे रविपुत्र हम पर कृपा करें व भक्तजनों की लाज रखें। “

 

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
 
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिये माल मुक्तन मणि दमके॥
 
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥

 

” हे दयालु शनिदेव महाराज आपकी जय हो, आप सदा भक्तों के रक्षक हैं उनके पालनहार हैं। आप श्याम वर्णीय हैं व आपकी चार भुजाएं हैं। आपके मस्तक पर रतन जड़ित मुकुट आपकी शोभा को बढा रहा है।

 

आपका बड़ा मस्तक आकर्षक है, आपकी दृष्टि टेढी रहती है ( शनिदेव को यह वरदान प्राप्त हुआ था कि जिस पर भी उनकी दृष्टि पड़ेगी उसका अनिष्ट होगा इसलिए आप हमेशा टेढी दृष्टि से देखते हैं ताकि आपकी सीधी दृष्टि से किसी का अहित न हो)।

 

आपकी भृकुटी भी विकराल दिखाई देती है। आपके कानों में सोने के कुंडल चमचमा रहे हैं। आपकी छाती पर मोतियों व मणियों का हार आपकी आभा को और भी बढ़ा रहा है।

 

आपके हाथों में गदा, त्रिशूल व कुठार हैं, जिनसे आप पल भर में शत्रुओं का संहार करते हैं। “

 

पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन॥
सौरी, मन्द, शनि, दशनामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
 
जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं। रंकहुं राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥

 

” पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दु:ख भंजन, सौरी, मंद, शनि ये आपके दस नाम हैं। हे सूर्यपुत्र आपको सब कार्यों की सफलता के लिए पूजा जाता है।

 

क्योंकि जिस पर भी आप प्रसन्न होते हैं, कृपालु होते हैं वह क्षण भर में ही रंक से राजा बन जाता है।

 

पहाड़ जैसी समस्या भी उसे घास के तिनके सी लगती है लेकिन जिस पर आप नाराज हो जांए तो छोटी सी समस्या भी पहाड़ बन जाती है। “

 

राज मिलत वन रामहिं दीन्हो। कैकेइहुं की मति हरि लीन्हो॥
बनहूं में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चतुराई॥
 
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
 
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
 
हार नौलाखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
 
विनय राग दीपक महँ कीन्हों। तब प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हों॥

 

“हे प्रभु आपकी दशा के चलते ही तो राज के बदले भगवान श्री राम को भी वनवास मिला था। आपके प्रभाव से ही केकैयी ने ऐसा बुद्धि हीन निर्णय लिया।

 

आपकी दशा के चलते ही वन में मायावी मृग के कपट को माता सीता पहचान न सकी और उनका हरण हुआ।

 

उनकी सूझबूझ भी काम नहीं आयी। आपकी दशा से ही लक्ष्मण के प्राणों पर संकट आन खड़ा हुआ जिससे पूरे दल में हाहाकार मच गया था। आपके प्रभाव से ही रावण ने भी ऐसा बुद्धिहीन कृत्य किया व प्रभु श्री राम से शत्रुता बढाई।

 

आपकी दृष्टि के कारण बजरंग बलि हनुमान का डंका पूरे विश्व में बजा व लंका तहस-नहस हुई। आपकी नाराजगी के कारण राजा विक्रमादित्य को जंगलों में भटकना पड़ा। उनके सामने हार को मोर के चित्र ने निगल लिया व उन पर हार चुराने के आरोप लगे।

 

इसी नौलखे हार की चोरी के आरोप में उनके हाथ पैर तुड़वा दिये गये। आपकी दशा के चलते ही विक्रमादित्य को तेली के घर कोल्हू चलाना पड़ा। लेकिन जब दीपक राग में उन्होंनें प्रार्थना की तो आप प्रसन्न हुए व फिर से उन्हें सुख समृद्धि से संपन्न कर दिया।”

 

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
 
श्री शंकरहि गहयो जब जाई। पार्वती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
 
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रोपदी होति उधारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
 
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ई॥

 

“आपकी दशा पड़ने पर राजा हरिश्चंद्र की स्त्री तक बिक गई, स्वयं को भी डोम के घर पर पानी भरना पड़ा। उसी प्रकार राजा नल व रानी दयमंती को भी कष्ट उठाने पड़े, आपकी दशा के चलते भूनी हुई मछली तक वापस जल में कूद गई और राजा नल को भूखों मरना पड़ा।

 

भगवान शंकर पर आपकी दशा पड़ी तो माता पार्वती को हवन कुंड में कूदकर अपनी जान देनी पड़ी। आपके कोप के कारण ही भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया।

 

पांडवों पर जब आपकी दशा पड़ी तो द्रौपदी वस्त्रहीन होते होते बची। आपकी दशा से कौरवों की मति भी मारी गयी जिसके परिणाम में महाभारत का युद्ध हुआ।

 

आपकी कुदृष्टि ने तो स्वयं अपने पिता सूर्यदेव को नहीं बख्शा व उन्हें अपने मुख में लेकर आप पाताल लोक में कूद गए। देवताओं की लाख विनती के बाद आपने सूर्यदेव को अपने मुख से आजाद किया।”

 

वाहन प्रभु के सात सुजाना। दिग्ज हय गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
 
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
 
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
 
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँजी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै॥
 
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्वसुख मंगल कारी॥

 

“हे प्रभु आपके सात वाहन हैं। हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर जिस वाहन पर बैठकर आप आते हैं उसी प्रकार ज्योतिष आपके फल की गणना करता है। यदि आप हाथी पर सवार होकर आते हैं घर में लक्ष्मी आती है।

 

यदि घोड़े पर बैठकर आते हैं तो सुख संपत्ति मिलती है। यदि गधा आपकी सवारी हो तो कई प्रकार के कार्यों में अड़चन आती है, वहीं जिसके यहां आप शेर पर सवार होकर आते हैं तो आप समाज में उसका रुतबा बढाते हैं, उसे प्रसिद्धि दिलाते हैं।

 

वहीं सियार आपकी सवारी हो तो आपकी दशा से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है व यदि हिरण पर आप आते हैं तो शारीरिक व्याधियां लेकर आते हैं जो जानलेवा होती हैं।

 

हे प्रभु जब भी कुत्ते की सवारी करते हुए आते हैं तो यह किसी बड़ी चोरी की और ईशारा करती है।

 

इसी प्रकार आपके चरण भी सोना, चांदी, तांबा व लोहा आदि चार प्रकार की धातुओं के हैं। यदि आप लौहे के चरण पर आते हैं तो यह धन, जन या संपत्ति की हानि का संकेतक है।

 

वहीं चांदी व तांबे के चरण पर आते हैं तो यह सामान्यत शुभ होता है, लेकिन जिनके यहां भी आप सोने के चरणों में पधारते हैं, उनके लिये हर लिहाज से सुखदायक व कल्याणकारी होते है।”

 

जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अदभुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
 
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
 
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

 

“जो भी इस शनि चरित्र को हर रोज गाएगा उसे आपके कोप का सामना नहीं करना पड़ेगा, आपकी दशा उसे नहीं सताएगी।

 

 

उस पर भगवान शनिदेव महाराज अपनी अद्भुत लीला दिखाते हैं व उसके शत्रुओं को कमजोर कर देते हैं। जो कोई भी अच्छे सुयोग्य पंडित को बुलाकार विधि व नियम अनुसार शनि ग्रह को शांत करवाता है।

 

 

शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल देता है व दिया जलाता है उसे बहुत सुख मिलता है। प्रभु शनिदेव का दास रामसुंदर भी कहता है कि भगवान शनि के सुमिरन सुख की प्राप्ति होती है व अज्ञानता का अंधेरा मिटकर ज्ञान का प्रकाश होने लगता है।”

 

॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की    हों विमल तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

 

“भगवान शनिदेव के इस पाठ को ‘विमल’ ने तैयार किया है जो भी इस चालीसा का चालीस दिन तक पाठ करता है शनिदेव की कृपा से वह भवसागर से पार हो जाता है। “

 

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भगवान शनि देव के मंत्र Lord Shani Dev Mantra in Hindi
 
शनि देव का तांत्रिक मंत्र ( Tantarik Mantra of Shani Dev)
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।
 
 
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शनि देव के वैदिक मंत्र (Vedic Mantra of Shani Dev)
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
 
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शनि देव का एकाक्षरी मंत्र (Ekashari mantra of Shani Dev)
ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
 
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शनि देव का गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra of Shani Dev)
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।।
 
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भगवान शनिदेव के अन्य मंत्र (Other Mantra of Bhagwan Shani Dev)
ऊँ श्रां श्रीं श्रूं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ हलृशं शनिदेवाय नमः।
ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ मन्दाय नमः।।
ऊँ सूर्य पुत्राय नमः।।
 
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साढ़ेसाती से बचने के मंत्र (Shani Mantra for Shani Dosha)
शनि देव की साढ़ेसाती के प्रकोप से बचने के लिए शनि देव को इन मंत्रों द्वारा प्रसन्न करना चाहिए:
 
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ।।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः।
ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।।
 
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क्षमा के लिए शनि मंत्र (Shani Mantra in Hindi)
निम्न मंत्रों के जाप द्वारा शनि देव से अपने गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।
 
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया।
दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।।
गतं पापं गतं दु: खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योहं तव दर्शनात्।।
 
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अच्छे स्वास्थ्य के लिए शनि मंत्र (Shani Mantra for Health in Hindi)
शनिग्रह को शांत करने तथा रोग को दूर करने के लिए शनि देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
 
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।
 
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शनि देव की पूजा के समय निम्न मंत्रों का प्रयोग करना चाहिए
भगवान शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें चन्दन लेपना चाहिए-
 
भो शनिदेवः चन्दनं दिव्यं गन्धादय सुमनोहरम् |
विलेपन छायात्मजः चन्दनं प्रति गृहयन्ताम् ||
 
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भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए
ॐ शनिदेव नमस्तेस्तु गृहाण करूणा कर |
अर्घ्यं च फ़लं सन्युक्तं गन्धमाल्याक्षतै युतम् ||
 
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इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनि देव को प्रज्वलीत दीप समर्पण करना चाहिए-
साज्यं च वर्तिसन्युक्तं वह्निना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेशं त्रेलोक्य तिमिरा पहम्. भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ||
 
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इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शनिदेव को यज्ञोपवित समर्पण करना चाहिए और उनके मस्तक पर काला चन्दन (काजल अथवा यज्ञ भस्म) लगाना चाहिए
परमेश्वरः नर्वाभस्तन्तु भिर्युक्तं त्रिगुनं देवता मयम् |
उप वीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||
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इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनि देव को पुष्पमाला समर्पण करना चाहिए
नील कमल सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो |
मयाहृतानि पुष्पाणि गृहयन्तां पूजनाय भो ||
 
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भगवान शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें वस्त्र समर्पण करना चाहिए
शनिदेवः शीतवातोष्ण संत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् |
देवलंकारणम् वस्त्र भत: शान्ति प्रयच्छ में ||
 
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शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सरसों के तेल से स्नान कराना चाहिए
भो शनिदेवः सरसों तैल वासित स्निगधता |
हेतु तुभ्यं-प्रतिगृहयन्ताम् ||
 
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सूर्यदेव पुत्र भगवान श्री शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए पाद्य जल अर्पण करना चाहिए
ॐ सर्वतीर्थ समूदभूतं पाद्यं गन्धदिभिर्युतम् |
अनिष्ट हर्त्ता गृहाणेदं भगवन शनि देवताः ||
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भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए
ॐ विचित्र रत्न खचित दिव्यास्तरण संयुक्तम् |
स्वर्ण सिंहासन चारू गृहीष्व शनिदेव पूजितः ||
 
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इस मंत्र के द्वारा भगवान श्री शनिदेव का आवाहन करना चाहिए
नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |
चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||
 
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शनि देव के 108 नाम

  • शनैश्चर- धीरे- धीरे चलने वाला
  • शान्त- शांत रहने वाला
  • सर्वाभीष्टप्रदायिन्- सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला
  • शरण्य- रक्षा करने वाला
  • वरेण्य- सबसे उत्कृष्ट
  • सर्वेश- सारे जगत के देवता
  • सौम्य- नरम स्वभाव वाले
  • सुरवन्द्य- सबसे पूजनीय
  • सुरलोकविहारिण् – सुरह्स की दुनिया में भटकने वाले
  • सुखासनोपविष्ट – घात लगा के बैठने वाले
  • सुन्दर- बहुत ही सुंदर
  • घन – बहुत मजबूत
  • घनरूप – कठोर रूप वाले
  • घनाभरणधारिण् – लोहे के आभूषण पहनने वाले
  • घनसारविलेप – कपूर के साथ अभिषेक करने वाले
  • खद्योत – आकाश की रोशनी
  • मन्द – धीमी गति वाले
  • मन्दचेष्ट – धीरे से घूमने वाले
  • महनीयगुणात्मन् – शानदार गुणों वाला
  • मर्त्यपावनपद – जिनके चरण पूजनीय हो
  • महेश – देवो के देव
  • छायापुत्र – छाया का बेटा
  • शर्व – पीड़ा देना वेला
  • शततूणीरधारिण् – सौ तीरों को धारण करने वाले
  • चरस्थिरस्वभाव – बराबर या व्यवस्थित रूप से चलने वाले
  • अचञ्चल – कभी ना हिलने वाले
  • नीलवर्ण – नीले रंग वाले
  • नित्य – अनन्त एक काल तक रहने वाले
  • नीलाञ्जननिभ – नीला रोगन में दिखने वाले
  • नीलाम्बरविभूशण – नीले परिधान में सजने वाले
  • निश्चल – अटल रहने वाले
  • वेद्य – सब कुछ जानने वाले
  • विधिरूप – पवित्र उपदेशों देने वाले
  • विरोधाधारभूमी – जमीन की बाधाओं का समर्थन करने वाला
  • भेदास्पदस्वभाव – प्रकृति का पृथक्करण करने वाला
  • वज्रदेह – वज्र के शरीर वाला
  • वैराग्यद – वैराग्य के दाता
  • वीर – अधिक शक्तिशाली
  • वीतरोगभय – डर और रोगों से मुक्त रहने वाले
  • विपत्परम्परेश – दुर्भाग्य के देवता
  • विश्ववन्द्य – सबके द्वारा पूजे जाने वाले
  • गृध्नवाह – गिद्ध की सवारी करने वाले
  • गूढ – छुपा हुआ
  • कूर्माङ्ग – कछुए जैसे शरीर वाले
  • कुरूपिण् – असाधारण रूप वाले
  • कुत्सित – तुच्छ रूप वाले
  • गुणाढ्य – भरपूर गुणों वाला
  • गोचर – हर क्षेत्र पर नजर रखने वाले
  • अविद्यामूलनाश – अनदेखा करने वालो का नाश करने वाला
  • विद्याविद्यास्वरूपिण् – ज्ञान करने वाला और अनदेखा करने वाला
  • आयुष्यकारण – लम्बा जीवन देने वाला
  • आपदुद्धर्त्र – दुर्भाग्य को दूर करने वाले
  • विष्णुभक्त – विष्णु के भक्त
  • वशिन् – स्व-नियंत्रित करने वाले
  • विविधागमवेदिन् – कई शास्त्रों का ज्ञान रखने वाले
  • विधिस्तुत्य – पवित्र मन से पूजा जाने वाला
  • वन्द्य – पूजनीय
  • विरूपाक्ष – कई नेत्रों वाला
  • वरिष्ठ – उत्कृष्ट
  • गरिष्ठ – आदरणीय देव
  • वज्राङ्कुशधर – वज्र-अंकुश रखने वाले
  • वरदाभयहस्त – भय को दूर भगाने वाले
  • वामन – (बौना ) छोटे कद वाला
  • ज्येष्ठापत्नीसमेत – जिसकी पत्नी ज्येष्ठ हो
  • श्रेष्ठ – सबसे उच्च
  • मितभाषिण् – कम बोलने वाले
  • कष्टौघनाशकर्त्र – कष्टों को दूर करने वाले
  • पुष्टिद – सौभाग्य के दाता
  • स्तुत्य – स्तुति करने योग्य
  • स्तोत्रगम्य – स्तुति के भजन के माध्यम से लाभ देने वाले
  • भक्तिवश्य – भक्ति द्वारा वश में आने वाला
  • भानु – तेजस्वी
  • भानुपुत्र – भानु के पुत्र
  • भव्य – आकर्षक
  • पावन – पवित्र
  • धनुर्मण्डलसंस्था – धनुमंडल में रहने वाले
  • धनदा – धन के दाता
  • धनुष्मत् – विशेष आकार वाले
  • तनुप्रकाशदेह – तन को प्रकाश देने वाले
  • तामस – ताम गुण वाले
  • अशेषजनवन्द्य – सभी सजीव द्वारा पूजनीय
  • विशेषफलदायिन् – विशेष फल देने वाले
  • वशीकृतजनेश – सभी मनुष्यों के देवता
  • पशूनां पति – जानवरों के देवता
  • खेचर – आसमान में घूमने वाले
  • घननीलाम्बर – गाढ़ा नीला वस्त्र पहनने वाले
  • काठिन्यमानस – निष्ठुर स्वभाव वाले
  • आर्यगणस्तुत्य – आर्य द्वारा पूजे जाने वाले
  • नीलच्छत्र – नीली छतरी वाले
  • नित्य – लगातार
  • निर्गुण – बिना गुण वाले
  • गुणात्मन् – गुणों से युक्त
  • निन्द्य – निंदा करने वाले
  • वन्दनीय – वन्दना करने योग्य
  • धीर – दृढ़निश्चयी
  • दिव्यदेह – दिव्य शरीर वाले
  • दीनार्तिहरण – संकट दूर करने वाले
  • दैन्यनाशकराय – दुख का नाश करने वाला
  • आर्यजनगण्य – आर्य के लोग
  • क्रूर – कठोर स्वभाव वाले
  • क्रूरचेष्ट – कठोरता से दंड देने वाले
  • कामक्रोधकर – काम और क्रोध का दाता
  • कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण – पत्नी और बेटे की दुश्मनी
  • परिपोषितभक्त – भक्तों द्वारा पोषित
  • परभीतिहर – डर को दूर करने वाले
  • भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद – भक्तों के मन की इच्छा पूरी करने वाले
  • निरामय – रोग से दूर रहने वाला
  • शनि – शांत रहने वाला

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क्यों है शनिदेव की दृष्टि टेढ़ी ?

शनि देव की दृष्टि टेढ़ी होती है, क्योंकि उनका स्वभाव बहुत उग्र होता है और वे अपनी सामर्थ्य और न्याय के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। इसके अलावा, शनि देव को अमावस्या के दिन या शनिवार को तेल चढ़ाने की परंपरा होती है, जिसे उनकी क्रोध मुक्ति के लिए अनुष्ठान माना जाता है। उनकी इस उग्र रूप और अमावस्या एवं शनिवार के दिनों में तेल चढ़ाने की परंपरा से इस विशेषता का संबंध माना जाता है।

 क्यों चढ़ाते है शनि देव को तेल

शनि देव को तेल चढ़ाने की परंपरा ज्योतिष शास्त्र से जुड़ी है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि ग्रह व्यक्ति की कुंडली में अशुभ होने पर विभिन्न समस्याओं का कारण बनता है। शनि देव को तेल चढ़ाने से उन्हें प्रसन्न करके इन समस्याओं से बचा जा सकता है। शनि देव त्वचा, दांत, कान, हड्डियां और घुटनों के कारक ग्रह माने जाते हैं और इन अंगों से संबंधित समस्याओं से निजात पाने के लिए तेल मालिश का उपयोग किया जाता है। शनिवार के दिन तेल चढ़ाने की रीति शनि देव को अर्पित करती है और उनसे आशीर्वाद लेने का माध्यम बनती है।

शनि को तेल अर्पित करते समय ध्यान रखें ये बात

जब आप शनि के लिए तेल अर्पित करते हैं, तो ध्यान रखें कि आप एक साथ एक से अधिक दीपक नहीं जला रहे हैं। इसके अलावा, आपको यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि आप शनिवार को ही तेल अर्पित करें, क्योंकि अन्य दिनों यह परंपरा नहीं है। तेल अर्पित करने से पहले आपको निश्चित हो जाना चाहिए कि आपका कुंडली में शनि अशुभ है या नहीं। यदि आप अशुभ शनि से पीड़ित हैं तो आपको शनिदेव की उपासना भी करनी चाहिए।

 

शनि पर तेल चढ़ाने से जुड़ी वैज्ञानिक मान्यता

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हमारे शरीर के सभी अंगों में अलग-अलग ग्रहों का वास होता है। इसका अर्थ है कि अलग-अलग अंगों के कारक ग्रह भी अलग-अलग होते हैं। शनिदेव त्वचा, दांत, कान, हड्डियां और घुटनों के कारक ग्रह माने जाते हैं।

यदि कुंडली में शनि अशुभ होता है, तो व्यक्ति को इन अंगों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन अंगों की विशेष देखभाल के लिए हर शनिवार तेल मालिश करना बेहद जरूरी माना जाता है।

शनि को तेल अर्पित करने का अर्थ होता है कि हम शनि से संबंधित अंगों पर भी तेल लगाएं, जिससे इन अंगों को पीड़ा से बचाया जा सके। मालिश करने के लिए सरसों के तेल का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है।