भैरव जी को एक अत्यंत महत्वपूर्ण देवता माना जाता है जो अपनी शक्ति और अनुग्रह से अपने भक्तों के संकटों को दूर करते हैं। भैरव जी की आरती गाने से उनकी कृपा और आशीर्वाद मिलता है।
श्री भैरव आरती का पाठ करने से भैरव जी की कृपा मिलती है और वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यह आरती भैरव जी के भक्तों को संतुलन, शक्ति और स्थिरता प्रदान करती है। भैरव जी की आरती को रोजाना पाठ करने से उनके भक्तों को भैरव जी की कृपा मिलती है और वे अपने जीवन में समृद्धि और सुख-शांति का अनुभव करते हैं।
श्री भैरव आरती
सुनो जी भैरव लाड़िले,कर जोड़ कर विनती करुं ।
कृपा तुम्हारी चाहिये, मैं ध्यान तुम्हरा ही धरूं ॥
मैं चरण छुता आपके,अर्जी मेरी सुन लिजिये ।
मैं हूं मति का मंद, मेरी कुछ मदद तो किजिये
महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूं
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
करते सवारी स्वान की, चारो दिशा मे राज्य है
जितने भूत और प्रेत हैं ,सबके आप ही सरताज हैं
हथियार हैं जो आपके, उसका क्या वर्णन करूं
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
माता जी के समने तुम, नृत्य भी करते सदा
गा गा के गुण अनुवाद से,उनको रिझाते गन हो सदा
एक सांकली है आपकी , तारिफ उसकी क्या करूं
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
बहुत सी महिमा तुम्हारी,मेंहदीपुर सरनाम है
आते जगत के यात्री, बजरंग का स्थान है
श्री प्रेतराज सरकार के, मैं शीश चरणों मैं धरूं
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
निशदीन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश रहें
सर पर तुम्हारे हाथ रख कर, आशिर्वाद देती रहें
कर जोड़ कर विनती करूं , अरु शीश चरणों मैं धरू
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
मैं चरण छुता आपके,अर्जी मेरी सुन लिजिये ।
मैं हूं मति का मंद, मेरी कुछ मदद तो किजिये
महिमा तुम्हारी बहुत, कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूं
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
करते सवारी स्वान की, चारो दिशा मे राज्य है
जितने भूत और प्रेत हैं ,सबके आप ही सरताज हैं
हथियार हैं जो आपके, उसका क्या वर्णन करूं
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
माता जी के समने तुम, नृत्य भी करते सदा
गा गा के गुण अनुवाद से,उनको रिझाते गन हो सदा
एक सांकली है आपकी , तारिफ उसकी क्या करूं
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
बहुत सी महिमा तुम्हारी,मेंहदीपुर सरनाम है
आते जगत के यात्री, बजरंग का स्थान है
श्री प्रेतराज सरकार के, मैं शीश चरणों मैं धरूं
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
निशदीन तुम्हारे खेल से, माताजी खुश रहें
सर पर तुम्हारे हाथ रख कर, आशिर्वाद देती रहें
कर जोड़ कर विनती करूं , अरु शीश चरणों मैं धरू
॥ सुनो जी भैरव लाड़िले ॥
॥ इति श्री भैरव आरती ॥