हरियाणा के गुड़गांव स्थित माता शीतला का मंदिर बहुत प्राचीन है और इस मंदिर को महाभारत के समय से जोड़कर देखा जाता है। सत्रहवीं सदी में इस मन्दिर का निर्माण महाराजा भरतपुर ने करवाया था सोने की माता कृपी की मूर्ति स्थापित करवायी थी । इस मूर्ति को बाद में किसी मुग़ल सम्राट ने तालाब में गिरवा दिया था और बाद में माता के किसी भक्त ने इसे निकलवाया था ।
कहा जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्य कौरवों और पांडवों को इसी स्थान पर अस्त्र-शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया करते थे। ऐसी मान्यता है कि गुरु द्रोणाचार्य को जब युद्ध में वीरगति प्राप्त हुए तो उनकी पत्नी कृपी उनके साथ चिता पर बैठ गई और सती हो गई। माता कृपी से उस वक़्त सबको यह आशीर्वाद दिया कि इस जगह पर जो भी मनोकामना करेगा, उसकी वो कामना अवशय पूर्ण होगी । माता की मूर्ति को लेकर एक और कथा प्रचलित है की गुडगाँव के शहर फर्रुख नगर में एक बढ़ई था जिसकी कन्या बहुत सुंदर थी। जब दिल्ली के बादशाह तो उस कन्या की सुंदरता का पता चला तो उन्होंने शादी का प्रस्ताव भेजा जिसे बढ़ई ने नामंजूर किया और बढ़ई ने महाराज सूरजमल से मदद मांगी लेकिन महाराज ने मना कर दिया लेकिन महाराज के बेटे ने उस बढ़ई की मदद की और दिल्ली पर आक्रमण किया लेकिन आक्रमण से पहले शीतला माता के मंदिर में विजय की मन्नत मांगी और जीत के बाद माता के मढ़ को पक्का करवाया।
इस मंदिर में देश भर के श्रद्धालु आते हैं और खास कर की नवरात्र के दिनों में इस मंदिर में ज़्यादा संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कहा जाता है की यदि नवजात बच्चों का प्रथम मुंडन संस्कार इस मंदिर में करवाया जाए तो यह बहुत शुभ होगा ।