भारत में अनेको मंदिर है और हर मंदिर की एक अपनी अपनी मान्यता है। इन् प्राचीन मंदिरो में से एक मंदिर है जहाँ पर कुत्ते की पूजा की जाती है। चलिए आज आपको बताते हैं इस प्राचीन मंदिर के बारे में :
यह मंदिर छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में है| इस मंदिर को 'कुकुरदेव ' मदिर के नाम से जाना जाता हैं। इस मंदिर में देवी देवता की पूजा नहीं की जाती है बल्कि इस मंदिर में कुत्ते की पूजा की जाती हैं। हलाकि यहाँ पर शिवलिंग भी मौजूद है लेकिन मुख्य रूप से यह मंदिर कुत्ते को ही समर्पित है और ऐसा माना जाता है की यहाँ पर आने से कुकुर खांसी और कुत्ते के काटने का डर नहीं रहता हैं।
इस मंदिर को फणी नागवंशी शासको ने 14-15 शताब्दी में बनवाया था। मंदिर के गर्भगृह में एक कुत्ते की प्रतिमा बनवायी गयी थी और उसके साथ ही एक शिवलिंग भी हैं। कुकुर देव मंदिर 200 मीटर के दायरे में बना हुआ हैं। आप जैसे ही मंदिर के अंदर प्रवेश करेंगे तो प्रवेश द्वार पर भी कुत्ते की ही प्रतिमा लगायी गयी हैं। लोग शिवलिंग के साथ साथ कुत्ते की वैसे ही पूजा करते है जैसे की और मंदिरो में शिवलिंग के साथ नन्दी बैल की पूजा की जाती है।
मंदिर में जो गुम्बर है उसकी चारो दिशाओ में नाग के चित्र है और मंदिर के चारो तरफ उस समय के शिलालेख भी लिखे है लेकिन उन्हें पढ़ा नहीं जा सकता हैं। उन पर बंजारों की , चाँद सूरज की और तारो के चित्र बने हुए हैं। इतना ही नहीं यहाँ पर राम लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्रतिमा भी रखी गयी हैं। इसके अलावा एक ही पत्थर से बनी दो फ़ीट की गणेश प्रतिमा भी इस मंदिर में स्थापित हैं।
इस मंदिर से जुडी एक कथा है। कहते है यहाँ पर पहले बंजारों की बस्ती थी और मालीघोरी नाम का एक बंजारा रहता था जिसके पास एक पालतू कुत्ता था। जब इस स्थान पर अकाल पड़ा तो उस बंजारों को अपने कुत्ते को एक साहूकार के पार गिरवी रखना पड़ा | तभी साहूकार के घर पर चोरी हो गयी और उस कुत्ते ने चोरो को साहूकार के घर का सामान पास का तालाब में छुपाते हुए देख लिया। सुबह होते ही वह कुत्ता साहूकार को उस तालाब तक लेकर गया और उसने उसका सामान उससे वापिस दिलवा दिया। कुत्ते के इस वफ़ादारी को देखकर साहूकार ने पूरी कहानी एक कागज पर लिखकर उसके गले में बांध दी और उससे अपने मालिक के पास जाने की अनुमति दे दी। जब बंजारे ने देखा उसका कुत्ता वापिस आ गया है तो उसे लगा की वह भागकर आ गया है है और बंजारे ने अपने कुत्ते को डंडे से पीट पीट कर मार दिया।
कुत्ते के मरने के बाद उस बंजारे ने उसके गले में वह कागज देखा और उसे वह पढ़कर बहुत अफ़सोस हुआ। तभी उसने अपने कुत्ते की याद में उसकी समाधी यहाँ मंदिर के स्थान पर बनवादी । बाद में किसी ने कुत्ते की मूर्ति की स्थापना करवा दी और तब से यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।
Dr. Sandeep Ahuja, an Ayurvedic doctor with 14 years’ experience, blends holistic health, astrology, and Ayurveda, sharing wellness practices that restore mind-body balance and spiritual harmony.