November 3, 2017 Blog

क्यों दिया तुलसी ने भगवान विष्णु को पत्थर होने का श्राप!

BY : Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer

Table of Content

लेखक: सोनू शर्मा


हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है। बहुत से लोग नहीं जानते होंगे कि क्यों तुलसी विवाह किया जाता है। जानते है तुलसी विवाह से जुडी  पौराणिक कथा -

शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ किया जाता है और इस उत्सव को बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। शास्त्रों और प्राचीन कथा के अनुसार वृंदा नाम की स्त्री का विवाह जालंधर से हुआ जो भी भगवान् शिव का ही अंश है, लेकिन जालंधर में बहुत अहंकार था और उसके इसी अहंकार के कारणवश उसमे आसुरी प्रवृत्ति आ गई । जालंधर कि पत्नी वृंदा भगवान् विष्णु कि बहुत भक्त थी और उसकी भगवान् विष्णु में अपार श्रद्धा थी जिसकी वजह से जालंधर अजेय बन गया । वृंदा की भक्ति के कारण कोई भी जालंधर के ऊपर विजय प्राप्त नहीं कर पता था, ना ही भगवान् शिव, ना विष्णु जी और ना ब्रह्मा जी । यहाँ तक की महादेव भी जलंदर को हरा नहीं पाए । जब सभी देवता जालंधर को हरा नहीं पाए, तब सबने मिलकर विष्णु जी से मदद की गुहार लगाई और उनकी सहायता के लिए विष्णु जी ने अपने आप को जालंधर का रूप दिया और वृंदा के पास गए और वृंदा उनको अपना पति समझकर उनके साथ पति जैसा व्यवहार करने लगी जिसके कारण वृंदा का पतिव्रत टूट गया और जालंधर का अंत हो गया । जब वृंदा को इसका पता चला तो वह यह बर्दाश नहीं कर पाई और गुस्से में वृंदा में विष्णु जी को श्राप दे दिया कि वह पत्थर बन जाए ।

विष्णु जी को पत्थर बना देखकर सभी देवता परेशान हो गए और वृंदा के पास गए, तब वृंदा ने विष्णु जी को श्राप से मुक्त कर अपने आप को जला दिया और उस राख में से पौधा उत्पन हुआ जिसे तुलसी से नाम से जाना गया और विष्णु जी ने उस पौधे को वरदान दिया कि इस पौधे कि पूजा पूरे विश्व में होगी और शालिग्राम के रूप में विष्णु जी हमेशा इस पौधे के साथ विद्यमान् रहेंगे । इसी कारणवश शुक्ल पक्ष की  एकादशी को तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ किया जाता है ।

Author: Dr. Sandeep Ahuja – Ayurvedic Practitioner & Wellness Writer

Dr. Sandeep Ahuja, an Ayurvedic doctor with 14 years’ experience, blends holistic health, astrology, and Ayurveda, sharing wellness practices that restore mind-body balance and spiritual harmony.