हर वर्ष आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है, इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के अत्यंत निकट होने के कारण चाँद गोल नज़र आता है तथा चन्द्रमा की किरणें धरती पर शीतलता प्रदान करती है । इस दिन लोग रात्रि में भ्रमण करते है तथा चंद्र किरणों का स्नान करते है ।
कार्तिक माह में होने वाले व्रत भी इसी दिन प्रारम्भ हो जाते है, इस दिन शिवजी, पारवती जी तथा कार्तिकेय भगवान की पूजा करना शुभ माना जाता है । ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मकमल केवल इसी रात्रि में खिलता है ।इस दिन ऐसी मान्यता है कि खीर बनाकर खुले आकाश में छलनी से ढक कर रखने से उसमे चन्द्रमा की किरण पड़ती है जिससे प्रभावशाली हो जाती है और सुबह उस खीर का सेवन करने से आँखों की रोशनी बढ़ती है और इस खीर को खाने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है ।
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, रास पूर्णिमा नाम इसलिए पड़ा क्योकि इस दिन श्री कृष्ण भगवान ने गोपियों के साथ रासलीला प्रारम्भ की थी जिससे कुछ प्रांतो में इसे रास पूर्णिमा कहते है।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अमृतवर्षा करता है, उसकी किरणें शीतल होती है जो स्वास्थ की दृष्टि से बहुत अच्छी होती है । लोग इस दन प्रातःकाल स्नान के पश्चात् अपने भगवान को अष्ट द्रव्य चढ़ाते है तथा पूजन करते है । वैज्ञानिक दृष्टि से देखे तो मौसम का बदलाव इसके बाद प्रारम्भ होता है, मौसम सुहावना हो जाता है।