हर साल दो बार गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है जिसमें दस महाविद्याओं की गुप्त (Gupt Navratri) तरीके से पूजा की जाती है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होती है। इस दौरान दस महाविद्याओं की आराधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यह पूजा मुख्य रूप से तंत्र-मंत्र करने वाले अघोरियों या तांत्रिकों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
Magh Gupt Navratri 2024: हिंदू धर्म में, नवरात्रि का समय देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा के लिए समर्पित है। हर साल 4 नवरात्र मनाए जाते हैं, जिनमें से दो गुप्त नवरात्र और 2 प्रचलित नवरात्र के रूप में मनाए जाते हैं। गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह में आती हैं। वहीं चैत्र और आश्विन माह में प्रकट नवरात्रि मनाई जाती है। इस समय दस महाविद्याओं की पूजा करने की परंपरा है। ऐसे में आइए जानते हैं दस महाविद्याओं को प्रसन्न करने का मंत्र।माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 10 फरवरी से शुरू हो रही है। ऐसे में गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) 10 फरवरी शनिवार से शुरू हो जाएगी. साथ ही इसका समापन 18 फरवरी रविवार को होगा.
गुप्त नवरात्रि की पूजा भी प्रकट नवरात्रि की तरह ही की जाती है। इन नौ दिनों में अखंड दीप भी जलाया जाता है। ऐसे में माघ गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) में घट स्थापना और स्थापना का समय कुछ इस प्रकार होगा -
गुप्त नवरात्रि के दौरान दस महाविद्याओं की पूजा करने की परंपरा है। ये 10 महाविद्याएं मां दुर्गा का ही रूप हैं। गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) के दौरान, प्रत्येक दिन एक अलग देवता की पूजा के लिए समर्पित होता है। ऐसे में आप इन मंत्रों की मदद से इन देवी-देवताओं की कृपा पा सकते हैं।
मंत्र - ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।।
मंत्र - ऐं ऊँ ह्रीं क्रीं हूं फट्।।
मंत्र - श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा।।
मंत्र - ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क ए ह ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं महाज्ञानमयी विद्या षोडशी मॉं सदा अवतु।।
मंत्र - ऐं ह्रीं श्रीं।।
मंत्र - हस्त्रौं हस्क्लरीं हस्त्रौं।।
मंत्र - धूं धूं धूमावती ठः ठः।।
मंत्र - ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानाम् वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय जिह्वा कीलय-कीलय बुद्धि विनाशाय-विनाशाय ह्रीं ऊँ स्वाहा।।
मंत्र - ऊँ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।।
मंत्र - ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः जगत्प्रसूत्यै नमः।।
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