September 14, 2018 Blog

जानिए श्राद्ध पूजा कैसे करे और श्राद्ध पूजा विधि

BY : STARZSPEAK

By: Deepika

पोराणिक कथाओं और रीति रिवाजों के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों को खुश करना चाहिए। पुराणों के अनुसार किसी भी वस्तु का सही समय और सही स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा बह्मणों को श्रद्धापूर्वक दान दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध पूजा प्रत्येक वर्ष श्राद्ध पक्ष में की जाती है। जरूरी नहीं है कि यह पूजा आप किसी विशेष तीर्थ स्थानों पर जाकर तर्पण करें, यह पूजा आप अपने घर में भी कर सकते हैं।

श्राद्ध पूजा विधि-

वैसे तो प्रत्येक पूजा करने की विधि का एक विधान होता है। यदि कर्मकांड को सही विधि से किया जाए तो उसका फल भी सही मिलता है। श्राद्ध पूजा विधि में सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और उसके बाद देव स्थान और पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीप कर और उसे गंगाजल से पवित्र करना चाहिए।

श्राद्ध अर्पित करने का और पित्तरों की पूजा करने का बिल्कुल सही समय सुर्योदय से लेकर दिन के 12 बजे  के बीच तक का है। इसी वक्त में ही बाह्मण को तर्पण कर देवें।

एक बात का अवश्य ध्यान रखे कि अपने पित्तरों का तर्पण करने के लिए शुद्ध शाकाहारी और जनेऊधारी बाह्मण को ही न्यौता दे, यदि आपने अशुद्ध कर्म करने वाले बाह्मण को श्राद्ध तर्पण कर दिया तो आपके पित्तर आप से नाराज हो सकते है और घर में अशान्ति हो सकती है। उचित मंत्रों वाला बाह्मण को तर्पण किया गया श्राद्ध सर्वोत्तम माना जाता है।

श्राद्ध पूजा कैसे करें-

पित्तरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, घी और खीर का अर्पण करें। बाह्मण भोजन से पहले जीव-जन्तु यानि गाय, कुत्ते , कौए, देवता और चीटियों के लिए भोजन को अलग से थाली में निकालें। दक्षिण की तरफ मुख करके कुश, तिल और जल लेकर पितृ देव से संकल्प करे और एक या तीन या 11 बाह्मणों को भोजन करवाएं । भोजन करवाने के बाद बाह्मणों को दान-दक्षिणा अवश्य दे, जो भी अपने सामर्थ्य अनुसार दें सकें। श्राद्ध पूजा के साथ दान करना अच्छा माना गया है। इस दिन बाह्मणों और गरीबों को दान अवश्य कराना चाहिए। गौ, भूमि , तिल , सोना, कपड़े, गुड़, चांदी और नमक जिसे महादान कहा गया है। का दान करना चाहिए।  


श्राद्धपक्ष का महत्व-

श्राद्ध का अर्थ है कि जो अपनी श्रद्धा से कुछ भी दिया जाए या दान किया जाए। धार्मिक ग्रन्थों और पोराणों के अनुसार श्राद्धपक्ष को महालया या पितृपक्ष भी कहा जाता है। भारत के कई हिस्सों में ज्यादातर पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है। श्राद्धपक्ष की तिथि निश्चित होती है। यह अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में ही आती है। इन श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते है,भोजन खिलाते है और उनकी मृत्यु तिथि के दिन श्राद्ध करते है।

  • हिन्दु धर्म के अनुसार हमारे ऊपर पित्तरों का ऋण यानि कि कर्ज होता है, उसे श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। श्राद्ध में पित्तरों का श्रादध करने से पितृपक्ष पूरे साल भर तक प्रसन्न रहते है।
  • कहते है कि यमराज हर साल श्राद्ध के दिनों में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं,जिससे वो अपने लोगों के पास जाकर जल,भोजन आदि ग्रहण कर सकें। शास्त्रों के अनुसार पित्तर अपने वंश या कुल की सैदव रक्षा करते है। इसलिए पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का पिंड दान करना नही भूलना चाहिए।
  • श्राद्ध पक्ष का महत्व इसलिए भी होता है कि पोराणों के अनुसार पित्तरों को पिण्ड दान करने वाला घर दीर्घायु,यश, लक्ष्मी,स्वर्ग, धन- धान्य, पुत्र-पोत्रादि और समृद्धि आदि की प्राप्ति करता है।
  • यह भी मान्यता है कि अगर हमारे पूर्वज जो कि पितृ के रूप में होते है अगर वे हमसे नाराज हो जाते है, तो उस व्यक्ति को अपने पूरे जीवन में कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। पित्तरों के रूठे होने के कारण घर मे धन की हानि और संतान की ओर से परेशानी आ सकती है। इसलिए श्राद्ध के दिनों में पित्तरो को तृप्त और प्रसन्न करने के लिए उनका पिंड दान करना चाहिए।