मौली या कलावे को रक्षासूत्र क्यों कहा जाता है|

मौली या कलावे को रक्षासूत्र क्यों कहा जाता है|

By: Megha

भारत देश समेत विश्व के कई देशों में हिन्दू धर्म के अनुसार पूजा-पाठ बेहद ही नियमों के साथ की जाती है। ऐसा माना जाता है कि पूजा-पाठ के नियमों का सीधे तौर पर मान्यता और आस्था से सम्बन्ध होता है। लेकिन कुछ हिन्दू धर्म के पूजा- पाठ और नियमों को आज विज्ञान भी सही मान रहा है। कई ऐसी चीज़े या व्रत या पूजा-पाठ, जो आस्था और विश्वास का प्रतीक माना जाता है वह वास्तव में विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरता है। जिसमें एक सबसे बेहतरीन उदाहरण हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ और त्यौहारों के दौरान कलाई पर कलावा बांधने का ,जो एक पारम्परिक तौर पर बांधते आ रहे है। वह विज्ञान के अनुसार स्वास्थ्य प्रद भी लाभदायक माना जाता है।



किसी भी त्यौहार और शुभ अवसर पर कलाई पर कलावा क्यों बांधा जाता है इसका कारण जानने से पहले यह जानते है कि कलावा क्या होता है। और किसने सबसे पहले कलावा बांधने की प्रथा की शुरूआत की।

कलावा को मौली भी कहा जाता है। और मौली का शाब्दिक अर्थ होता है ‘सबसे ऊपर’। हिन्दू धर्म में यदि कोई भी पूजा-पाठ , यज्ञ, हवन , ब्याह-शादी या फिर कोई भी शुभ अवसर होता है तो ब्राह्मण द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है मौली बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन त्रिदेव की कृपा प्राप्त होती है।


कलावा या मौली बांधने की शुरूआत-

मौली बांधने की शुरूआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि के द्वारा गई थी। यह तो सभी जानते है कि कलावे को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है। ऐसे में माना जाता है कि कलाई पर इसकों बांधने से जीवन में आने वाले संकट से यह आपकी रक्षा करता है।

शास्त्रों के अनुसार यह कहानी है कि जब राजा बलि ने अपनी चतुराई और शक्ति से तीनों लोक पर विजय बनने जा रहे थे तो उस वक्त राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपना द्वारपाल तक भी बना लिया था। इस कारण देवी लक्ष्मी अपने पति परमेश्वर भगवान विष्णु को द्वारपाल बना ना देख सकी। और लक्ष्मी जी ने राजा बलि को भाई बनाकर रक्षासुत्र बांधकर उपहार में अपने प्राण प्रिय भगवान विष्णु को आजाद करवा लाई। तभी से यह प्रथा चली आ रही है कि भाई अपनी बहन से मौली बंधवाकर अपनी शक्ति अनुसार रक्षा करने की कसम खाता है साथ ही उपहार भी प्रदान करता है।

वहीं वेदों में भी इसका बखान किया गया कि जब वृत्रासुर से युद्ध के लिए इन्द्र जा रहे थे तब इंद्राणी ने इंद्र की रक्षा के लिए  उनकी दाहिनी भुजा पर रक्षासूत्र बांधा था, जिसके अनुसार इन्द्र ने वृत्रासुर को मारकर विजयी बने और तभी से यह परम्परा बन गई। तब से लेकर आज तक यह परम्परा चली आ रही है। और ऐसा भी कहा जाता है जब युद्ध होता था तब किसी भी क्षत्रिय का युद्ध पर जाने से पहले बहन अपने भाई की कलाई पर मौली या कलावे के रूप में राखी बांधकर युद्ध में विजय बनने का वचन लेती थी।

वही वैज्ञानिकों के अनुसार मौली या कलावा बांधना स्वास्थय के लाभप्रद मानी जाता है। वैज्ञानिक अनुसार यह भी माना जाता है कि पहले किसी चिकित्सक ने बिमारियों और ग्रहों की चाल अनुसार मौली या कलावा बांधने की शुरूआत की। तभी से यह कई किवदंतियों से जुड़ी आ रही है। और धीर-धीरे इसके पीछे का कारण ईश्वरीय कहानी का मोड़ दे दिया गया ताकि लोग आस्था और धर्म से जोड़कर इसका उपयोग दैनिक जीवन में करें।

वास्तव में मौली और कलावा बांधने से शारीरिक और मानसिक बिमारियों को दूर किया जाता है। साथ ही नकरात्मक प्रभावों को भी दूर करती है।